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सावन की बहार

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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देखो-देखो आ गई फिर से सावन की बहार,
चहक उठी है धरती बरसे सावन की फुहार।

महक उठा आज अपना, आँगन और घर-द्वार,
झूम उठा आसमान, गाएं सब मिल के मल्हार।

देखो-देखो आयी फिर से सावन की बाहर,
देखो सखी, फिर होने लगी सावन की बौछार।

सखियाँ सारी झूला झूलें, विरहन रोए जार-जार,
कजरी गाए, झूमर गाए डाल बाँहों का हार।

पिया मिलन की आस में, गोरी करे इंतजार,
ना जाने कब आएगा पिया मिलन का त्यौहार।

मोर नाचे, दादुर टर्र-टर्र करे हर बार,
प्रेमी भी जतलाने लगे प्रेमिका से प्यार।

बगुले उड़े गगन में बांध के अपनी कतार,
मछलियाँ भी दौड़ पड़ी बना के अपना हार।

किसान भी खुश हो ठीक करने लगे खेत की आर,
प्रकृति भी खिल गई अब पा के अपना गुलनार।

सज-सँवर के दुल्हन खड़ी भई अपने घर के द्वार,
आएंगे साजन आज, ले के कोई अच्छा-सा उपहार।

कहीं घुँघरू की आवाज, कहीं पायल की झंकार,
सावन का मस्त महीना आया ले के खुशियाँ हजार।

पर्वत झूमे, जंगल खिले, नदियाँ बहाए जलधार,
‘दीनेश’ सावन पर कविता लिखे, मौका मिला इस बार।

शिव शंकर की पूजा करें, आज है सोमवार,
देवों के देव महादेव का नाम लो तुम यार।

सारी मनोकामना पूरी करेंगे, पार्वती जिनकी नार,
बम-बम-बम के बोल से गुंजा दो आज संसार॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।