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`हनी` की वैतरणी

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग,और लोग क्या कहेंगे इसकी चिंता किए बगैर कुछ काम कुछ लोग कर लेते हैं,तो बाद में मुँह दिखाने के लायक भी नहीं रहते,क्योंकि जब लोग कहते हैं तो इज्जत का फालूदा ही बनता है।

अब हनीट्रैप को ही देख लो, लिव इन में हनीमून समझ कर हनी के साथ मजे लेने के चक्कर में ट्रिप की। मजे ले भी लिए,पर जब सौदा मनी पर आया तो हनी को ट्रैप करने में खुद ही ट्रैप(जाल या उलझना)हो गये। सत्ता में रहकर सुंदरियों की सहायता से और संपदा में वृद्धि करने और दोनों पर हाथ साफ करके मनुष्य जब विरक्त होकर संत बनने लगा तो,सुंदरी ने अपना आखरी दाँव चला और मनुष्य चारों खाने चित हो गया।

हनी ट्रिप करने वाले ‘समरथ को नहीं दोष गुंसाई’ को अपनाकर अपने रसूख के बल पर वैतरणी पार कर गंगा में डुबकी लगाने का मन बना रहे थे,पर भूल गये कि जिसने वो पंक्ति लिखी,उसी ने यह भी कहा है-‘जो जस करहि तस फल चाखाl’ बहुत सारी इच्छाओं के साथ कर्म किया,अब फल आने लगे हैं,और यह भी सत्य है कि कर्म का फल हमेशा बढ़ता ही रहता है। और शहद की तरह मीठा ही हो,यह जरुरी भी नहीं। जिसने बोया उसको तो खाना ही पड़ेगा,नहीं खाओगे तो पुलिस और अदालत खिला ही देगी।

हमारे यहाँ जब भी ट्रैप(पकड़मबाजी)होती है,तो कुछ डायरियां,कुछ मोबाइल नम्बर और कुछ सी.डी. पकड़ने की खबरें अखबारों की सुर्खियाँ बनती है। इस बार भी बनी,और इस बार की हनीट्रैप में वीडियो क्लिप भी उजागर हुए,एवं लिखने वालों को फिर एक मुद्दा मिल गया। पुरातन परम्परा का ही स्वरुप विद्वानों ने इस ट्रैप को बताया है,और कहा कि सत्ता की नाव सदा से ही सुंदरियों के सौंदर्य के भरोसे तैरती रही है,तथा सदा तैरती रहे,इसके लिए सदा से सुंदरियों को विषकन्या के रूप में तैयार किया जाता रहेगा। पुरातन काल में राजा अपने राज्य की सुंदर कन्याओं को बाल्यावस्था से ही जहरपान करवाता और यौवनावस्था में विषकन्या के रूप में दूसरे राजाओं पर विजय प्राप्ति के लिए उनका उपयोग करता था। वो विष कन्याएँ,शत्रु राजा को रूप के जाल में फंसा कर मौत के घाट पर पहुंचा देती थी। अब कन्याएँ अपने यौवन का सौदा करके और वीडियो क्लिप बना कर राजा और प्रजा दोनों को हिला देती है,और जो इनके संसर्ग में आया,उसका फालूदा बना देती है। आदमी जब कोयले की दलाली करके सफेद कपड़े बचाने के चक्कर में हो,तो ही ट्रैप होता है। करे भी क्या ?,काले हो कर निकल सकता नहीं, ता-उम्र कोयले की खदान में रहने का मन भी नहीं,तो ट्रैप तो होना ही अच्छा,ताकि हम्माम के सारे साथी एक जैसे ही बाहर निकले,न किसी को गिला रहे न शिकवा। आखिर हनी की चिपचिपाहट,है तो सबमें ही।

 

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