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सास को माँ नहीं कह पाऊँगी

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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ऐसा नहीं सास मुझे प्यारी नहीं,
वो मुझे न करतीं प्यार हो ऐसा भी नहीं…
देती पूरा सम्मान हूँ,करती पूरा काम हूँ,
पर वो भाव कहाँ से लाऊंगी,मैं सास को माँ नहीं कह पाऊँगी।

थककर जब मैं आती हूँ,फिक्र वो जताती हैं,
चाय बना,प्यार वो जताती है,लेकिन वो माँ-
लौट कॉलेज से आना,यूँ ही थककर सो जाना,
उठा प्यार से दूध पिलाना,गोदी में सर रख प्यार से सहलाना…
भूल न पाऊँगी,मैं सास को माँ…।

दर्द मैं दवा की याद दिला अपना फर्ज निभाती हैं,
लेकिन माँ के…दर्द में मेरे आँसू बहाना…
हाथों से अपने बाम लगाना,गोद में सर रख सो जाना,
मैं वो आँसू,वो गोद कहाँ से लाऊंगी…
मैं सास को माँ…।

लगा के थाली साथ-साथ खिलाती थी,
डाँट-डाँट कर काम सिखाती थी…
जब भाई से लड़ जाती थी,प्यार से मुझे समझाती थी,
मैं वो समझ,वो भाव कहाँ से लाऊंगी…
मैं सास को माँ न…।

सास को माँ समझना माँ ने मुझे समझाया था,
सम्मानीय हैं हर फर्ज निभाऊंगी,लेकिन…
दिल से उठता है जो दर्द,वो दर्द वो रक्त कहाँ से लाऊंगी,
मैं सास को माँ न कह पाऊँगी…॥

परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनाम `गीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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