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सौन्दर्य

डॉ.विभा माधवी
खगड़िया(बिहार)

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भोली-भाली प्यारी रचिता का विवाह होने वाला है। मन में अनेक कोमल कल्पना अँगड़ाई ले रही है। उसके विवाह की खरीददारी शुरू हो गई है। जब भी वह खरीददारी में शामिल होती तो वह समझ नहीं पाती कि वह किस वस्त्र और गहनों का चुनाव करे,क्योंकि उसे लगता है कि उसे सुंदरता की पहचान नहीं है।
रचिता की माँ घर की मंझली बहू है,जो उसके दादा-दादी के मन के अनुरूप दहेज नहीं लाने के कारण शुरू से ही घर में उपेक्षित रही। घर के सभी कामों का भरपूर ख्याल रखने की कोशिश के बाद भी उसके कामों में प्रायः मीन-मेख निकाला जाता था,जबकि घर की बड़ी एवं छोटी बहू को घर में मान-सम्मान एवं आदर प्राप्त था। समय-समय पर दोनों बहुएँ वस्त्र एवं उपहार की हकदार हुआ करती थी। रचिता बचपन से ही अपनी माँ को घर के सभी सदस्यों का भरपूर ख्याल रखने की कोशिश करते हुए देखती, फिर भी उसके हिस्से में बातों के तीखे सलाद पड़ते थे। सास-ससुर द्वारा यह अक्सर सुनने को मिलता-“इंजीनियर समधी से नाता जोड़ कर भी अपने बेटे की शादी में एक लाख भी नहीं भुना सका। माय-बाप अनेहीये बीहा करी देलकै आजकल त कुलियो-कबाड़ी के एकरा से बेसी दहेज मिले छै। हमें यते जतन से बेटा के पढे लिये-लिखे लिये सब्भे व्यर्थ होय गेलय। इंजीनियर के बेटी अप्पन घर में एडजस्ट करे पारतय”,इत्यादि-इत्यादि। पन्द्रह-सोलह वर्षीय बहु अपरिपक्व उम्र में घर-गृहस्थी का बोझ अपने कंधों पर उठाने की भरपूर कोशिश करते हुए माता-पिता के दिए हुए संस्कारों से खुद को सींचती हुई सबको खुश रखने की कोशिश करती ताकि उसके माता-पिता को भला-बुरा न सुनना पड़े। किसी ने यह नहीं सोचा कि “एक इंजीनियर की बेटी मेरे घर में क्यों लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना,सबके कपड़ा धोना,गाय को खाना देना,उपले थापना,धान कूटना,दाल दलना जैसे कठिन कार्य को कर रही है ??? वह चाहती तो आराम से अपने मायके में भी रह सकती थी। सभी उसके काम में पूर्णता खोजते। कहाँ से लाती अचानक पूर्णता बिना अभ्यास के। जिस काम को बचपन से कभी देखा भी नहीं था। इन सब कामों से थोड़ा समय चुराकर नन्हीं रचिता की देखभाल करती तो उसके दादा-दादी कहते-“कनियाँ के त दस काम में से नौ काम बच्चे छैl” नन्हीं रचिता को बचपन से ही इतना समझ आ गया था कि वह अपनी मम्मी को जरा भी परेशान नहीं करती। दिनभर अपनी चचेरी बहन के साथ खेलती रहती तथा बीच में किसी समय आकर अपनी मम्मी से चिपट कर थोड़ा प्यार कर लेती,जैसे अपनी थकी-हारी माँ को संजीवनी देने आयी हो।
रचिता घर की तीसरी पोती एवं उपेक्षिता बहू की पुत्री होने के कारण बचपन से ही दादा-दादी के स्नेह से वंचित रही,वहीं उसकी चचेरी बहन जो घर की पहली पोती थी,दादा-दादी की लाड़ली थी एवं सबके हिस्से के स्नेह और उपहार की अकेली हक़दार।
रचिता के दादाजी गांव के एक प्रतिष्ठित एवं संभ्रांत व्यक्ति हैं,जो अपनी तथाकथित आदर्शवादिता,विद्वता,दानशीलता एवं उदारता के कारण अपने समाज में चर्चित हैं।
दादा-दादी के स्नेह से वंचित रचिता धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। वह अपनी माँ की लाड़ली थी। एक बार दशहरा पूजा के अवसर पर अपनी माँ के साथ बाजार से पीले रंग का टॉप और ब्लू रंग की जींस लेकर आई। बाल सुलभ उत्सुकतावश वह दौड़कर दादा-दादी को अपने नए कपड़े दिखाने लगी। उसके नए कपड़ों को देखकर हिंदी के विद्वान दादाजी ने ‘क्रोचे के अभिव्यंजना वाद’ के अनुसार सौंदर्य की परिभाषा देते हुए कहा,- “सौंदर्य की पहचान तुम्हे कहां ? इन वस्त्रों में सुंदरता कहाँ है ? मेरी खरीदी हुई वस्तुओं में सौंदर्य होता है। तुम्हारी शादी में मैं जब सोने का हार दूंगा, तब देखना कि सौंदर्य कैसा होता है ?” दादी ने भी अपनी सहमति जताते हुए कहा,-“सब्भे पोती के तो हरदमे कुछ न कुछ त देत्ते रहै,छियै तोरे कहियो कुछो नय देलियो कहियो। तोरा बिहा में एके बार बढ़िया सनक सोना के हार देबौl” बाल सुलभ मन अपनी पसंद की गई वस्तुओं से दुखी हो गया और उसे कभी पहनने का मन नहीं किया। मन ही मन प्रेमचंद की जालपा की तरह विवाह में दादाजी की ओर से मिलने वाले वाले सोने के सुंदर हार की प्रतीक्षा करने लगी।
समय बीतता गया। उसकी तीनों चचेरी बहनों की शादियाँ उसके दादाजी ने अपनी हैसियत के अनुरूप खूब धूम-धाम से की और ढेर गहने- गुड़िये दिए गये। समय का दुष्चक्र कुछ ऐसा चला कि रचिता की दादी असमय ही असाध्य बीमारी में गुजर गई। उचित समय आने पर रचिता का विवाह तय हुआ। रचिता जब भी कुछ खरीदने जाती तो दादाजी द्वारा दिये गए सौंदर्यशास्त्री ‘क्रोचे’ के अनुरूप वस्तु में सौंदर्य ढूंढने की कोशिश करती। विवाह में रचिता को दादाजी की ओर से आशीर्वाद स्वरूप एक हजार का नोट परिवार के दूसरे सदस्य के हाथों से मिला। उन्होंने शादी में उपस्थित होकर पोती को आशीर्वाद देना भी अनिवार्य नहीं समझा। अभी भी सौंदर्य और सुंदरता की परिभाषा रचिता की समझ से परे है।

परिचय-डॉ.विभा माधवी की जन्म तारीख १७ मार्च १९७३ एवं जन्म स्थान-बरौनी है। आप बिहार के जिला खगड़िया स्थित ग्राम चंद्रनगर में रहती हैं,जबकि स्थाई बसेरा जमशेदपुर में है। भाषा ज्ञान हिंदी तथा अंग्रेजी का है। राज्य झारखंड की मूल निवासी डॉ.माधवी ने एम.ए.(हिंदी),बी.एड. सहित पी-एच.डी.एवं नेट (हिन्दी में उत्तीर्ण)की शिक्षा प्राप्त की है। कार्यक्षेत्र में विद्यालय में शिक्षिका हैं। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेती रहती हैं। लेखन विधा-कविता, आलेख, संस्मरण,समीक्षा एवं गद्य की अन्य विधा है। रचना प्रकाशन कई पत्र-पत्रिकाओं में जारी है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा करना है। प्रेरणा पुंज-हिंदी की साहित्यिक पुस्तकें और विशेषज्ञता-हिंदी की गद्य विधा में लेखन है।

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