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स्नेहिल वटवृक्ष पिता

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
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‘पिता का प्रेम, पसीना और हम’ स्पर्धा विशेष…..

पिता के प्रेम की कहाँ शुरू करूँ मैं बात,
पिता हृदय रहे अनुपम स्नेह दिन औ रात
हर दिन करते श्रम वो बहाते रहे पसीना,
हर स्वाँस लक्ष्य उनका परिवार सुख-सौगात।

स्नेह-प्रेम से समझाते रहे पथ बनाओ जीवंत,
सत राह रहे ध्येय हमारी शिक्षा सदा अनंत
पुस्तकालयों क्रय दिलाते अनेक ग्रंथ पुस्तक,
कहे जीवन कर्म अर्थ समझो बन पार्थ भक्त।

पिता होते बरगद वृक्ष से छाया दी अनंत,
कष्ट हमें ना छू पाए स्वयं कष्ट किए दिन-रात
सौम्य रह दृढ़ संकल्प से बढो़ पाने को लक्ष्य,
भविष्य उज्ज्वल रहे पुत्री तुम मेरा ही रक्त।

पिता ने सींचा हमें निस्वार्थ प्रेम श्रम है कंत,
रचे गढे़ मार्गदर्शक कभी रहा ना आशीष अंत
हँस कर भाल चूम कहते मेरी प्रथम कविता,
मानवता के कर्म सुख से बड़ा नहीं कोई संत।

छोटे-बड़ों की सेवा गुरूजनों का मान महत,
लक्ष्यहीन ना हो यात्रा सीख दिए भाव सत।
शक्ति हृदय प्रेरणा कष्ट भरी राहों से सीख,
कोटि नमन पिता मेरे आशीष दीजे दिग-दिगंत॥

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है

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