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हँसता हूँ, मगर उल्लास नहीं

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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हँसता हूँ मगर उल्लास नहीं, रोने पे मुझे विश्वास नहीं,
इस मूरख मन को जाने क्यों, ये जी बहलावे रास नहीं।

अश्रु का खिलौना टूट गया, मुस्कान की गुड़िया रूठ गई,
इस चंचल बालक-मन को मगर, लूटे जाने का अहसास नहीं।

सब बात बिगड़ने की, एक आस-निराश का चक्कर है,
जो बिगड़ गई वो बात नहीं, जो टूट गई वो आस नहीं।

क्या भींगा-भींगा मौसम था, क्या रुत है फ़ीकी-फ़ीकी सी,
हम पहरों रोया करते थे, अब एक भी आँसू पास नहीं।

हिम्मत तो करो पूछो तो सही, इस बगिया के रखवालों से,
क्यों रंग नहीं है फूलों पे, क्यों कलियों में खुशबू बास नहीं।

वो आ जाएं या घर बैठे, कुछ इसमें ऐसा फ़र्क नहीं,
ये मिलना-जुलना रस्में हैं, दिल इन रस्मों का दास नहीं।

जब सारा जीवन बीत गया, तब जीने का ढंग आया है,
वो जाएं तो कोई शोक नहीं, वो आएं तो कोई उल्लास नहीं॥

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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