अवधेश कुमार ‘आशुतोष’
खगड़िया (बिहार)
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(रचनाशिल्प:१२२ १२२ १२२ १२२)
हमारा तुम्हारा जभी सामना हो,
बढ़े प्यार दिल में,निरंतर घना हो।
सबेरे उठें हम,सुनें बात दिल की,
रहे जग सुखी नित,यही प्रार्थना हो।
जिधर आँख डालें,सुमन बस खिला हो,
चमन हर दिशा में,महक से सना हो।
हसीं चांदनी हो,निशा भी जवां हो,
कटे प्यार में निशि,यही कामना हो।
बहे ज्ञान की गंग चारों दिशा में,
बढ़े ज्ञान सबका यही भावना हो।
यही आरजू जिंदगी के सफर में,
इतर काम में ही जिगर दिल फ़ना हो॥
परिचय-अवधेश कुमार का साहित्यिक उपनाम-आशुतोष है। जन्म तारीख २० अक्टूबर १९६५ और जन्म स्थान- खगरिया है। आप वर्तमान में खगड़िया (जमशेदपुर) में निवासरत हैं। हिंदी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले आशुतोष जी का राज्य-बिहार-झारखंड है। शिक्षा असैनिक अभियंत्रण में बी. टेक. एवं कार्यक्षेत्र-लेखन है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेते रहते हैं। लेखन विधा-पद्य(कुंडलिया,दोहा,मुक्त कविता) है। इनकी पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें-कस्तूरी कुंडल बसे(कुंडलिया) तथा मन मंदिर कान्हा बसे(दोहा)है। कई रचनाओं का प्रकाशन विविध पत्र- पत्रिकाओं में हुआ है। राजभाषा हिंदी की ओर से ‘कस्तूरी कुंडल बसे’ पुस्तक को अनुदान मिलना सम्मान है तो रेणु पुरस्कार और रजत पुरस्कार से भी सम्मानित हुए हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-हिंदी की साहित्यिक पुस्तकें हैं। विशेषज्ञता-छंद बद्ध रचना (विशेषकर कुंडलिया)में है।