संजय गुप्ता ‘देवेश’
उदयपुर(राजस्थान)
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पर्यावरण दिवस विशेष………..
कभी इन हवाओं में शुद्धता ही बहा करती थी,
कभी इन नदियों में निर्मल धारा ही बहती थी।
कभी भू मंडल हरे घने पेड़ों से आच्छादित था,
कभी शिखरों पर हिम ही लदी रहा करती थी।
स्वच्छ जल,थल और नभ में कलरव होता था,
उर्जा से उठता था मानव,चैन से ही सोता था।
फिर जो नया दौर चला,हर तरफ विकास फला,
यह भी जरूरी था,पर इसमें पर्यावरण जला।
हवा ये काली दमघोंटू हुई,साँस लेना मुश्किल,
नदियाँ गंदे नाले बनीं और घबराए हमारे दिल।
प्लास्टिक कचरा,हानिकारक कूड़ा,गंदगी,
जमीं का पानी पाताल गया,सूखा तिल-तिल।
‘ओजोन’ परत खत्म हो रही है,बढ़ रहा है ताप,
विकास ने उन्नति दी,पर्यावरण को दिया श्राप।
मनुष्य असहाय हुआ सोचता यह,बस रह लेंगे,
रह नहीं सके तो बस किसी तरह से तो सह लेंगे।
पर्यावरण प्रदूषण की मार है जीवन में हर जगह,
यह बनेगा जीने का सम्बल या मरने की वजह।
पर अभी भी यहाँ,इतनी देर भी तो नहीं हुई है,
उठें और कुछ करें,अभी भी यह समय सही है।
बस हमें,अब तो बस,बस करके ही दिखाना है,
पर्यावरण बचे और भावी पीढ़ी को बचाना है।
बूँद-बूँद पानी को बचाए हमारा सारा समाज,
प्लास्टिक को ‘ना’ कहने की उठाएं ही आवाज़।
कूड़ा-कचरे का हम सही जगह करें निस्तारण,
एक पेड़ हर साल लगाएं खिलाएं हम उपवन।
हम यह अवश्य करें,सबका होगा यही प्रयास,
प्रदूषण राक्षस का होगा तब समूल से विनाश।
कल कारखानों को कानूनन सब मानना होगा,
राष्ट्रीय स्तर पर भी ठोस कदम उठाना होगा।
‘पर्यावरण दिवस’ पर मिलकर हम लें यह शपथ,
हर सम्भव मिल इसको बचायें,पुकार रहा वक्त॥
परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।