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प्रिंसिपल सर

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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शिक्षक:मेरी ज़िंदगी के रंग’ स्पर्धा विशेष…..


गुरु गोविंद से बढ़कर है और क्यों है,आप,मैं और हम सभी जानते हैं। जिनसे हमें ज्ञान,जानकारी,या नेक सलाह मिलती है,वे हमारे गुरु हैं। गुरु-उम्र, जाति,लिंग,धनी-निर्धन या ज्ञानी-अज्ञानी से परे है, मगर अक्षर ज्ञान या शालेय शिक्षा प्रदान करने वाले आजकल असल गुरू माने जाते हैं,क्योंकि उन्होंने पढ़ना सिखाया और हम पढ़ कर दुनिया समझे।
इससे अलग आध्यात्मिक गुरु हमें सृष्टि का ज्ञान करा कर ईश्वर से मिलने की राह दिखाते हैं।
एक संस्मरण के रुप में वो प्रसंग जो भुलाए नहीं भूलता,जब मैं महाविद्यालय में प्रथम वर्ष की छात्रा थी। वहाँ मेरे बड़े भाई सीनियर थे,उनका रुतबा था। वे पूर्व छात्र अध्यक्ष थे।
मई माह में हम परीक्षा के प्रथम दिन प्रथम पर्चा दे रहे थे। मेरे सभी प्रश्न हल हो गए। ३ घण्टे का समय और मैं २ घण्टे में ही पूरे उत्तर सही-सही फटाफट बिना सप्लिमेंट्री कॉपी के लिख कर बैठ गई। कोई उत्तरपुस्तिका जमा नहीं की थी,इसलिए खिड़की से बाहर और इधर-उधर देखती रही। बाहर गलियारे में प्रिंसिपल सर खिड़की के पास से गुजरे,उन्होंने सोचा मैं नकल के लिए ताक-झाँक कर रही हूँ या नकल कर रही हूँ। वे अंदर आए और रूम इंचार्ज सर से बोले,-वो लड़की नकल कर रही है।
मुझे खड़ा किया गया। मैंने बताया-सर मेरे पर्चे हो चुके हैं। उन्हें विश्वास नहीं हुआ,मेरे प्रश्न-पत्र की जांच की गई,और जमा करने हेतु ले लिए। कोई कुछ नहीं बोला। जब परिणाम आया,तब मैं उस वर्ष महाविद्यालय की टॉपर निकली। सर ने मेरे भाई के साथ मुझे बुलाकर उस पर्चे वाली घटना को बताकर मुझे आशीर्वचन के साथ पुरस्कृत किया। उनके आशीर्वचन और मेरी उमंग से पूरे ३ वर्ष कक्षा की टॉपर रही।

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

 

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