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हर बच्चे नित सभ्य सफल जीवन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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नवांकुरित नवकिसलय भारत निकुंज,
हर बच्चे कलियाँ कुसमित सुरभित हों।
चहुँमुखी तरक्की हो जीवन मधुवन,
अलिगुंज मुदित रमणीक चमन हों।

बच्चे होते निर्माणक नव भविष्य,
उन्मुक्त विहंगम विहगवृन्द हों।
विद्वेष विरत निश्चल विमल गंगाजल,
नव लतिका मृदुला बालक मन हो।

नित आगाज़ नया नूतन परिवर्तन,
अभिनंदनीय स्वागत हर बच्चे हों।
हों कर्मवीर पौरुष बल लक्ष्य पथिक,
संयमित धीर साहसी आत्म बली हों।

हो ऐसी शिक्षा चहुँमुखी विकास,
आत्मनिर्भर बच्चे वतन मान हो।
निर्माण बालक बिन जाति धर्म भाष,
बन कर्णधार राष्ट्र उत्थान नवल हो।

हों शौर्य वीर सपूत बच्चे भारत,
अनुसन्धान नया नित नव शोधक हों।
हो चिन्तन सदा बाल समतामूलक,
औदार्य भाव परार्थ समरस मन हो।

रोजगार परक शिक्षण हो संस्थान,
संतोष मुदित मन बच्चे युवजन हों।
स्वर्णिम अतीत निर्माणक कीर्ति धवल,
अनमोल सफल स्वागत नवजीवन हो।

साहित्य कला संगीत सब शास्त्र निपुण,
सत् पथ योद्धा जय वाहक बच्चे हों।
न्याय त्याग शील समन्वित हों परहित,
राष्ट्र भक्ति प्रेम सुधा मन सच्चे हो।

ऊंच-नीच भाव नहीं मन जाति धर्म,
दीन धनी भेद बिन प्रगति बच्चे हों।
अर्पित जीवन रख मान तिरंग वतन,
आस्तिकता जीवन दर्शन बच्चे हों।

सदाचार चरित्र हो संस्कार सृजित,
बचपन मानस शुभ प्रगतिपरक हो।
ईमान-धर्म अनुशासित हो ज़मीर,
अहं कोप शोक रोग बिन बचपन हो।

सब बच्चों का विकास बिन लिंगभेद,
जब बच्चे बने सुपात्र तरक्की हो।
संविधान प्रेम गणतंत्र जन सेवन,
हर बच्चे नित सभ्य सफल जीवन हो॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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