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लौट आओ मुसाफिर

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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उल्टी फेरी मत कीजिए रहोगे हरदम बन के दिन,
दु:ख से तपोगे ऐसे,जैसे तड़पती जल बिन मीन।

साधु-संत चलते हैं सदा,वह हरदम धर्म की चाल,
किसी को कभी कहीं दु:ख ना हो,रखते हैं ख्याल।

मित्र मांसाहारी ना बनना,संकट घेरेगा चारों ओर,
डूबोगे भवसागर में,तब नहीं मिलेगा अन्तिम छोर।

अब भी समझ मानव तू,कहना मेरा तुम मानना,
जीवन मुक्ति मिलेगी तब,सदा सत्य पथ पर चलना।

कितने आए-गए मुसाफिर,जहाँ नहीं हुआ है खाली,
जो आए जो गए,सबको माता भारती संभाली।

हे मनुष्य बहुत सौभाग्य से,यह मनुष्य तन पाया है,
अपने पूर्वजों के सौजन्य से,तुम्हारी निर्मल काया है।

धन के पीछे मत दौड़ना,धन तो क्षणभंगुर माया है,
धन को अपना कहते हो,जो आज तेरा-कल पराया है।

सही धन तुम्हारा,कुल माता-पिता और तेरा है संस्कार,
जिसको तुमने भुला दिया,धर्म का किया है बहिष्कार।

पर नारी पर ध्यान रखा है,अपनी विवाहिता गया भूल,
धर्म तुमने बदनाम किया,जाना नहीं विवाहिता का मूल।

लौट आओ,तेरा नदी किनारे ही बसेरा है मुसाफिर,
करना है हरी भजन कर,वरना पछताएगा मुसाफिर।

श्मशान तेरा घर होगा,अन्धकार तुम्हारा धन होगा,
आत्मा भटकेगी जब श्मशान में,कितना दर्द होगा॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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