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हवा चली इस तरह

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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हवा चली कुछ इस तरह, राजनीति परिवेश।
धर्म-जाति-भाषा कलह, भुले एकता देश॥

पुन: विवादों से घिरी, ईवीएम कमसीन।
हवा चली कुछ इस तरह, नेता जी गमगीन॥

पूछ बढ़ी फिर से प्रजा, नेता जोड़े हाथ।
हवा चली कुछ इस तरह, वादाओं के साथ॥

दीन-हीन जीवन प्रगति, सरकारी अनुदान।
हवा चली कुछ इस तरह, मिले विभव यश मान॥

लोकतंत्र के पर्व में, छींटाकशी खटास।
हवा चली कुछ इस तरह, घटती गई मिठास॥

सामाजिक सम्वेदना, राजनीति कहँ आज।
मर्यादा शुचि आचरण, क्षत-विक्षत समाज॥

हनन चरित नेता तुले, नारी शक्ति समाज।
कहाँ वचन संकोच मन, दुराचरण आगाज॥

नेता करते हैं गबन, जाते हैं जब जेल।
पकड़े जाते ही कहे, ईडी शासन मेल॥

बने अदालत स्वयं में, खुद हैं न्यायाधीश।
निर्णेता साक्षी स्वयं, कारा सत्ताधीश॥

बढ़ी चुनावी गर्मियाँ, खौल रहा जनतंत्र।
संविधान की आड़ में, लूट झूठ रव मंत्र॥

आम लोग हैं हम वतन, चाहे कभी चुनाव।
अंतर क्या किस तंत्र से, पाते केवल घाव॥

आरक्षण के नाम पर, होता सभी चुनाव।
कहाँ ज्ञान-सम्मान अब, जाति धर्म दुर्भाव॥

मीत वृथा चिन्ता समझ, पड़ो न नेता खेल।
कौन आज ईमान है, बेइमान गठमेल॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥