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हार मानने के बजाए सामना करना चाहिए

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष…

“जीवन में हार-जीत लगी रहती है, लेकिन सफलता सिर्फ उसी व्यक्ति को मिलती है जो अपनी गलतियों और हार से सीख लेकर आगे बढ़े। हारकर निराश होना किसी भी समस्या का हल नहीं है।” वर्तमान में श्रीकृष्ण की ऐसी शिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है। कारण कि जो समस्याएं वर्तमान में हैं, वे ही तत्समय में भी थी, पर विपरीत परिस्थतियों में अपने-आपको कैसे सम्हालें, के लिए उनकी शिक्षाएं आज भी कारगर हैं।
जन्माष्टमी का त्यौहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मथुरा नगरी में असुर राज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए इस दिन को प्रतिवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया।
इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है। श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाकियाँ सजाई जाती हैं और भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजा के उन्हें झूला झुलाया जाता है।
कृष्ण जी के जीवन का सार यही है कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए और अपनी अलग पहचान बनाने के लिए यदि आपको क्रांतिकारी बनना पड़े तो इससे पीछे न हटें। कहने का सीधा मतलब ये है कि, जरूरत के हिसाब से खुद में बदलाव करें और समाज के बारे में न सोचते हुए अपने काम पूरे करें।
जीवन में दोस्तों की भूमिका बहुत अहम होती है। हम हमेशा यही सुनते हैं कि दोस्तों की पहचान हमेशा मुश्किल वक्त में ही होती है। जिस तरह भगवान कृष्ण ने पांडवों के मुश्किल वक्त में उनका साथ दिया था, वैसे ही आपको भी अपने दोस्तों का साथ देना चाहिए। इसके साथ ही आपको ऐसे ही दोस्त बनाने चाहिए, जो मुश्किल वक्त में आपके साथ खड़े रहें।
किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए एक बेहतर रणनीति बनाना बहुत जरूरी है। बिना रणनीति के आप हर मोर्चे पर कामयाब नहीं हो पाएंगे। यदि पांडव भी श्री कृष्ण द्वारा बनाई गई रणनीति का पालन नहीं करते तो शायद कौरवों के खिलाफ हुए युद्ध में उन्हें जीत नहीं मिलती।
जीवन में सफलता हासिल करने के लिए आपकी सोच दूरदर्शी होनी चाहिए, साथ ही जीवन में आने वाली विकट परिस्थितियों का आंकलन करना भी आपको आना चाहिए। व्यक्ति के जीवन में आए दिन मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। श्री कृष्ण पांडवों को बताते हैं कि, हमें खराब हालातों में हार मानने के बजाए उनका सामना करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से ही हमारे मन में बैठा डर खत्म होगा और जब एक बार डर निकल जाता है तो व्यक्ति किसी भी हालात को सफलतापूर्वक पार कर सकता है।
जीवन में सफल बनने के लिए व्यर्थ की चिंता के साथ-साथ भविष्य के बारे में भी नहीं सोचना चाहिए। हमें हमेशा अपने वर्तमान को बेहतर बनाना चाहिए। यदि आप अपने वर्तमान को संवार लेते हैं, तो आपका भविष्य अपने-आप ही बेहतर बन जाएगा। इसके अलावा कभी भी अनुशासनहीन नहीं होना चाहिए।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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