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हिंदी के विकास में हिंदीतरभाषियों का अनन्य योगदान-प्रो. चौबे

राष्ट्रभाषा प्रचार समिति(वर्धा) ने मनाया स्थापना दिवस… 
वर्धा(महाराष्ट्र)।

हिंदी के उन्नयन में हिंदीतर भाषियों का बहुत योगदान है। महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर,नामदेव, तुकाराम जैसे संतों ने हिंदी की सेवा की तो आधुनिक काल में भी मराठीभाषी हिंदी सेवियों की एक लंबी सूची हैl
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के संकायाध्यक्ष प्रो.कृपाशंकर चौबे ने यह बात राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के स्थापना दिवस समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर,नामदेव, तुकाराम जैसे संतों ने हिंदी की सेवा की तो आधुनिक काल में भी मराठीभाषी हिंदी सेवियों की एक लंबी सूची है, जिनमें कुछ प्रमुख नाम हैं-काका कालेलकर,विनोबा भावे,बाबूराव विष्णु पराड़कर,लक्ष्मण नारायण गर्दे, माधव राव सप्रे, राहुल बारपुते, मुक्तिबोध, प्रभाकर माचवे, रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर, चंद्रकांत वांडिवडेकर,लीना वांडिवडेकर, अनंत गोपाल शेवड़े,और आनंद देशमुख। इसी तरह मलयालमभाषी एम.के. दामोदरन उण्णि से लेकर प्रो. जी.गोपीनाथन,अरविंदाक्षन,एन. चंद्रशेखरन नायर,तमिलभाषी सुब्रह्मण्यम भारती,सुमति अय्यर और डॉ.पी. जयरामन,कन्नड़भाषी बी.वी.कारंत,तेलुगुभाषी भीमसेन निर्मल और यार्लगड्डा लक्ष्मी प्रसाद ने भी हिंदी की अनन्य सेवा की।
प्रो.चौबे ने कहा कि भारतीय भाषाओं में भाषागत भेद होते हुए भी विचारों की एकध्येता रही है। तमिल व संस्कृत को छोड़कर सभी भारतीय भाषाओं का जन्म काल एक समान है। विकास के चरण एक हैं। संत साहित्य का प्रभाव एक सा है। साहित्यिक प्रवृत्तियां भी एक जैसी हैं। इसीलिए हिंदी दूसरी भारतीय भाषाओं के साथ सहकार संबंध कायम कायम कर सकी है। भारतीय भाषाओं के बीच पारस्परिक साझेदारी और समझदारी विकसित करना समय की मांग है।
इस अवसर पर समिति,वर्धा की ओर से उसके प्रधानमंत्री प्रो.अनंत राम त्रिपाठी ने शॉल ओढ़ाकर व स्मृति चिह्न देकर प्रो.चौबे का सम्मान किया। प्रो.त्रिपाठी ने संस्था के इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला। समारोह को संस्था के कोषाध्यक्ष नवरतन नाहर,सहायक मंत्री हेमचंद्र वैद्य,परीक्षा मंत्री प्रकाश बाभले और अशोक शुक्ल ने भी संबोधित किया।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)

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