कुल पृष्ठ दर्शन : 338

विभाजन की रेखाएँ

राजेश पुरोहित
झालावाड़(राजस्थान)
****************************************************

कुण्डलपुर गाँव में आज एक ही चर्चा थी-सेठ धनपत राय के चारों बेटे ने अपना अपना हिस्सा ले लिया। सेठजी की धन-दौलत,मकान-दुकान,सोना-चाँदी का आज बँटवारा हो गया। छोटे से लेकर बड़ों तक गाँव के लोगों में बस एक ही चर्चा थी। नाई की दुकान पार मंदिरों की धर्मशालाओं में,चौपालों पर सबके मुँह पर एक बात-सेठजी ने आज अपने बेटों में बँटवारा कर दिया।
सेठजी के चारों बेटों ने अपने पिताजी से कहा-“पिताजी आपने सब कुछ हमें बराबर-बराबर बाँट दिया है। अब हम सब-सुख चैन से रहें,इसके लिए हमारे इतने बड़े घर के भी चार हिस्सों को रेखाएं खींचकर विभाजन करवा दीजिये।”
सेठजी ने नौकरों को कह कर चारों बेटों के अलग-अलग घर के बराबर-बराबर हिस्से देकर विभाजन की रेखाएं खिंचवा दी। सेठजी ने अब चैन की साँस ली।
दिन खत्म हो गया,गोधूलि बेला आ गई। गाँव के बैल,गाय,भैंस,बकरी घर की ओर आने लगे।चारों भाई गंगाराम, चैनाराम,देवाराम और सालगराम की धर्म पत्नियाँ सुशील,शारदा,रुक्मणी तथा कृष्णा आज मन ही मन बहुत खुश हो रही थी। रोज-रोज की लड़ाई-झगड़े व मान-मर्यादा में रहते-रहते तंग आ गई थी चारों बहुएँ। अब न जेठ की,न सास-ससुर की सेवा करनी होगी। अब तो हम आज़ाद हो गई। पति परमेश्वर व मैं,ये सोचकर सभी अपने अपने कक्ष में प्रसन्न हो रही थी।
चारों भाई व उनकी पत्नियाँ रिश्तों के बंधन से आज मुक्त हो गए। चारों एकल परिवार जश्न में डूबे थे। सभी के घर पर आज खुशी मनाने के लिए व्यंजन बने थे। इधर सेठजी जी व सेठानी द्वारकी जी की आँखों से आँसू बह रहे थे। सेठजी, सेठानी जी से रोते-रोते कहने लगे-“देखा तुमने,आज हमारे दिल के टुकड़े काँच के टुकड़ों की तरह बिखर गए। कितने वर्षों से एकसाथ रह रहे थे। सारा गाँव हमारे घर का उदाहरण देता था। एकता देखनी हो तो सेठजी के घर को देखो। आज हमारे घर की उस एकता को ग्रहण लग गया द्वारकी जी। विभाजन की रेखाएं खिंच गई,जो दिलों में दीवार का काम कर देगी। मेरा जी घबरा रहा द्वारकी…” बस ये कहा ही था कि सेठजी धनपतराय का शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। चारों बेटों को पता चला तो फूट-फूट कर रोने लगे-पिताजी आप हमें छोड़कर कहाँ चल दिये…।
सेठजी की अंत्येष्टि में आये उनके मित्र लक्ष्मीचन्द ने उन चारों बेटों को पास बुलाकर समझाया-“तुम्हारे पिताजी के अंत का कारण ये विभाजन की रेखाएँ है। सेठजी नेक दिल इंसान थे। तुम्हारे बंटवारे से वे बहुत दुखी थे। आज घर-घर में विभाजन की रेखाएं खिंच रही है, ये ही बुजुर्गों की असमय मौत का कारण है बेटों।

Leave a Reply