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हिंदी-वन्दना

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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हिंदी दिवस विशेष….


नए बोल सिखाती है,
मुझे ज्ञान कराती है।
ऐ माँ भाषा तू ही मुझको,
सम्मान दिलाती है।
नए बोल सिखाती है़…॥

भारत का है गौरव तू,
चमकी बन भानु प्रभा।
जन-जन में है सौरव तू,
महकी हर दिशा दिशा।
भारत-सुत में तू ही,
नया स्वाभिमान जगाती है।
नए बोल सिखाती है,
मुझे ज्ञान कराती है।
ऐ माँ भाषा तू ही मुझको,
सम्मान दिलाती है।
नए बोल सिखाती है़…॥

अ से अज्ञानी जन को,
तू ज्ञ से ज्ञान कराए।
भ से भारत का जग में,
तू ध से ध्वज फहराए।
वर्णमाला ये तेरी,
नव-नव गीत बनाती है।
नए बोल सिखाती है,
मुझे ज्ञान कराती है।
ऐ माँ भाषा तू ही मुझको,
सम्मान दिलाती है।
नए बोल सिखाती है़…॥

संस्कृति में तूने लिया जन्म,
जन-जन ने तुझे अपनाया।
मैथिली बने संरक्षक तेरे,
भारतेंदु ने जीना सिखाया।
देवी,सुभद्रा,प्रेम,निराला,
तू कबसे बनाती है।
नए बोल सिखाती है,
मुझे ज्ञान कराती है।
ऐ माँ भाषा तू ही मुझको,
सम्मान दिलाती है।
नए बोल सिखाती है़…॥

‘खड़ी बोली’ तू बन कर पनपी,
अब व्यापकता ही पाए।
तेरे इस इतिहास को शुक्ल,
सब जन-जन तक पहुँचाए।
सरलता ही तेरी हमें,
अति सफल बनाती है।
नए बोल सिखाती है,
मुझे ज्ञान कराती है।
ऐ माँ भाषा तू ही मुझको,
सम्मान दिलाती है।
नए बोल सिखाती है…॥

सखी नागरी संग में लेकर,
लिपि तूने अपनी बनाई।
ध्वनि-रूप प्रमाणित करके,
वैज्ञानिकता सिद्ध कराई।
जो जैसा बोला,वैसा ही,
तू लिखना सिखाती है।
नए बोल सिखाती है,
मुझे ज्ञान कराती है।
ऐ माँ भाषा तू ही मुझको,
सम्मान दिलाती है।
नए बोल सिखाती है…॥

अंग्रेजी भाषी मन को भी,
अब भाने लगी है तू भी।
भारत-सीमा भी पार कर,
जग समाने लगी है तू भी।
गुरु टैगोर का बन आशीष तू,
नई श्रद्धा जगाती है।
नए बोल सिखाती है,
मुझे ज्ञान कराती है।
ऐ माँ भाषा तू ही मुझको,
सम्मान दिलाती है।
नए बोल सिखाती है़…॥

लिखूँ,बोलूं तुझको ही गाऊँ,
सीखूं तुझसे ही,
मैं जीना सिखाऊँ।
भले कुछ भी मैं पढूं,पढ़ाऊँ,
तेरा ही बस वन्दन चाहूँ।
तू ही तो ‘डी कुमार’ को,
अब ‘अजस्र’ बनाती है।
नए बोल सिखाती है,
मुझे ज्ञान कराती है।
ऐ माँ भाषा तू ही मुझको,
सम्मान दिलाती है।
नए बोल सिखाती है॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

 

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