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होली

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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होली की हुड़दंग में,डूब न जाना यार।
मजे-मजे से आप भी,खूब मना त्यौहार॥

गिले-शिकवे भूल कर,रंग प्यार का खेल।
दुश्मन से भी प्रेम से,कर लेना जी मेल॥

होली का त्यौहार है,गूँज रहे हैं फाग।
ढोल नगारा संग में,छेड़ रहे हैं राग॥

देख हवा मदमस्त है,छायी रूत खुमार।
मौसम खिला बसन्त का,उड़े रंग है चार॥

नीली-पीली जामुनी,देखो चमके गाल।
सबका मुखड़ा है हुआ,रंगों में जी लाल॥

पावन बेला में मची,होली की यह धूम।
कोई मिलते है गले,कोई माथा चूम॥

रंगों का त्यौहार यह,मन में छाय उमंग।
आव मनाएं प्रेम से,मिल करके सब संग॥

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