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हमको गढ़ती है माँ

पूनम दुबे
सरगुजा(छत्तीसगढ़) 
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मातृ दिवस स्पर्धा विशेष…………


ना शब्द है ना कोई बात
जो माँ के लिए लिख पाऊं,
उसके चरणों में मैं
नित-नित शीश झुकाऊं,
जग जननी है माँ
हमारी भाग्य विधाता माँ।

गीली माटी की तरह
वो हमको गढ़ती है,
संस्कार की रौशनी
वो हममें भरती है,
कौन करेगा ये सब
माँ ही तो करती है।

कड़ी धूप में शीतल छाया
हरदम रहता माँ का साया,
उसकी गोद में आकर
जन्नत का सुख मैंने पाया,
इतनी ममता लुटाती है
और कौन,माँ ही करती है।

ममता की बरसात है वो
प्यार की वो प्यास है वो,
अपने बच्चों की खुशियों
की मुस्कान है वो,
माँ तो माँ है हमारे
जीवन का आधार है वो।

कितनी रातें कितने सपनों
का उसने त्याग किया,
तब जाकर उसने हमारे
सपनों को साकार किया,
उसका मान और सम्मान करें
चाहे कितना बलिदान करें,
कभी भी ये कर्ज उतार नहीं पायेंगे
उसको श्रद्धा से शीश हम झुकाएंगे,
माँ तो सिर्फ माँ है…
नित-नित शीश झुकाएंगे॥

परिचय-श्रीमती पूनम दुबे का बसेरा अम्बिकापुर,सरगुजा(छत्तीसगढ़)में है। गहमर जिला गाजीपुर(उत्तरप्रदेश)में ३० जनवरी को जन्मीं और मूल निवास-अम्बिकापुर में हीं है। आपकी शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत विशारद है। साहित्य में उपलब्धियाँ देखें तो-हिन्दी सागर सम्मान (सम्मान पत्र),श्रेष्ठ बुलबुल सम्मान,महामना नवोदित साहित्य सृजन रचनाकार सम्मान( सरगुजा),काव्य मित्र सम्मान (अम्बिकापुर ) प्रमुख है। इसके अतिरिक्त सम्मेलन-संगोष्ठी आदि में सक्रिय सहभागिता के लिए कई सम्मान-पत्र मिले हैं।