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गाँव मनोरम

कैलाश झा ‘किंकर’
खगड़िया (बिहार)
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गाँव मनोरम दृश्य लिये नित,
स्वच्छ हवा-जल पूरित होता।
दूध,दही,मछली नित माखन,
गेह अनाज विभूषित होता।
खेत-पथार सुशोभित गामक,
बात-विचार न दूषित होता।
बाग-बगान हँसे निशि-वासर
ग्राम-प्रधान सुपूजित होता।

पश्चिम में सरिता नद-निर्झर,
उत्तर में मधु वृक्ष लगायो।
दक्षिण में कृषि योग्य धरा पर,
धान,गहूम,चना उपजायो।
पोखर एक बड़ा मनभावन,
गामक पूरब में खुदवायो।
हाट-बजार बसाकर पूर्वज,
सुन्दर हरिपुर ग्राम बनायो॥

कार्तिक मास बड़ा सुखदायक,
ब्रह्म मुहूर्त में लोग नहाते।
मौसम देख चराचर हर्षित,
बाग बगान सुगंधित भाते॥
कीर्तन खूब हुआ करता नित,
राम-सिया सद्नाम सुनाते।
नाटक भी छठ के मनभावन,
संस्कृति-गौरव खूब बढ़ाते।

शिक्षण के हित उच्च शिखा तक,
पूर्वज ने गुरु-ज्ञान बढ़ाया।
शिक्षण-साधन के हित सुन्दर,
आलय का निरमाण कराया।
शिक्षण से अभियंत्रण-सेवक,
और कलेक्टर भी बन पाया।
हरिपुर गाँव बड़ा सुखनन्दन,
किंकर के मन को हरषाया॥

बागमती तट पश्चिम,उत्तर
पूरब में कृषि धन्य करायो।
धान,गहूम,चना,सरसों,जव
राहर,मूँग सदा उपजायो॥
ओल,टमाटर,सीम,चुकंदर,
बैंगन की सबजी लहरायो।
बागमती नद पे अवलम्बित,
उद्यम से सुख भी घर आयो॥

पर्व सभी लगते अति सुन्दर,
स्नेह सरोवर में हरषाते।
ईद कभी बकरीद कभी छठ,
दीप सजे घर आँगन भाते।
और कभी नवरात्र मनाकर,
शक्ति उपासन भी कर आते।
और मुहर्रम में तजिया सँग,
परती में सबसे मिल आते॥

परिचय-कैलाश झा का साहित्यिक उपनाम-किंकर है। जन्म १२ जनवरी १९६२ को पर्रा बेगूसराय(बिहार) में हुआ है। पैतृक गाँव-हरिपुर(खगड़िया) निवासी श्री झा वर्तमान में जिला खगड़िया(बिहार)में बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,अंगिका, मैथिली का है। आपकी शिक्षा-एम.ए. तथा एल.एल.बी. है। कार्यक्षेत्र-प्रधानाध्यापक (खगड़िया)का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप खगड़िया में साहित्यिक संस्था के संयोजक और मंच के महासचिव हैं। साथ ही एक पत्रिका के सम्पादक भी हैं। इनकी लेखन विधा-गीत,ग़जल,लेख ,आलेख,कथा,लघुकथा,संस्मरण,समीक्षा एवं डायरी आदि है। प्रकाशित पुस्तकों में-‘हिन्दी कविता संग्रह-संदेश, दरकती जमीन,चलो पाठशाला,तीनों भुवन की स्वामिनी,कोई-कोई औरत और ईमान बचाए रखते हैं’ के अलावा  अंगिका संग्रह-‘जत्ते चलै चलैने जा,ओकरा कोय सनकैने छै,जानै जौ कि जानै जाता’ सहित ग़ज़ल संग्रह-‘हम नदी की धार में, देखकर हैरान हैं सब और मुझको अपना बना के लूटेगा’ आदि हैं। शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हैं। आकाशवाणी भागलपुर और दूरदर्शन पटना से रचनाएँ प्रसारित और कई भाषाओं में अनुवादित भी हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको बिहार,उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं दिल्ली आदि की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। किंकर की विशेष उपलब्धि-मंत्रिमंडल सचिवालय (हिन्दी विभाग)बिहार सरकार द्वारा ग़ज़ल संग्रह-‘देखकर हैरान हैं सब’ को पांडुलिपि प्रकाशन अनुदान मिलना है। लेखनी का उद्देश्य-‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के भाव से भारतीय छंदों के प्रचार-प्रसार हेतु लेखन,प्रकाशन और आयोजन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’,महादेवी वर्मा, शिवपूजन सहाय,जानकी वल्लभ शास्त्री,सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, फणीश्वरनाथ रेणु और प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-पूनम कुमारी है। विशेषज्ञता -हँसी-मजाक पसंद होने से हास्य-व्यंग्य की ओर शुरू से झुकाव है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘स्वाधीनता की रोशनी को गाँव-घर तक ले चलें,
गुमनामियों में जी रहे अहले-हुनर तक ले चलें।
जब काव्य-पुष्प खिल जाएगा,
सबको जवाब मिल जाएगा।’

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