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हम हैं बस प्यार के..

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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क्या खूब सलीके इज़हार के
प्यार के,बेकरारी के तराने,
क्या कशिश अनसुलझे अहसास के,
क्या समर्पण स्वयं का प्यार के निकुंज में
नासमझी कहूँ ख़ुद की,या सौ बहाने,
आरजू,आशिकी या दिलकशी,
या अविरल भक्ति की रसधार में,
हूँ समाए बहुरूप दिल के ताज़ मेंl
चाहत चमन की गुलिस्तां के नूर हम
खूबसूरत हैं नज़ारे मचलते इस प्यार के,
अलिकुंज मन मैं फूल बन बिखेरूँ महक
सतरंग में नवरंग भर होली मनाऊँ,
ख्वाबों की मल्लिका नवगीत गाऊँ
गाथा बनूँ अनुपम मिलन अनुराग के,
मदिरा बनूँ रतिराग में नवप्रीत केl
दिल दिया तुम पे लूटा सर्वस्व को
अनज़ान सपनों में बसा मन दिलरुबा,
बेकरार करती रात-दिन तेरी दीवानगी
चाहत बने अरमान हो मेरी जिंदगी,
तुम कौन हो और हो कहाँ अनज़ान हूँ
देव हो,दानव-मनुज या कोई खगवृन्द हो,
पर जो भी तुम,हो जहाँ,जिस रूप में
मैं चाँदनी आशिक बनी तुम चाँद हो,
रागिनी मैं भक्तिनी मीरा या राधा समझ
बस पी रही वियोगिनी बन के ज़हर,
कर चुकी खुद को समर्पित बस तुम्हारे प्रेम मेंl
रतिराग के विरहानल हूँ बस जल रही
दूभर बना हर पल विरह अनुराग में,
पर न व्यथित हूँ मैं सदा आगत नवाश में
आक्रान्त कर श्यामल घटा नीलाभ में,
आशाकिरण नववृष्टि का आगाज़ बन
फैलेगी हरीतिमा चारुतम भू चहुँदिशा,
लौटेंगी खुशियाँ मनोरम सतरंग बन
प्रियतम मिलन के नवकिरण अरुणाभ के,
दीप जलेंगें आवली में प्रेम के अनगिनत
प्रतिमान बन निच्छल अनोखी चाह केl
तुम जहाँ हो बस,सुनो तुम हो मेरे
एतबार या इकरार या बेकरार समझो,
फ़रियाद या आरज़ू या अकेला प्यार समझो
निःशब्द हूँ,कैसे बताऊँ दर्द दिल का,
पर जानती हूँ है मेरे अहसास की
नित कशिश की तुझको समझ,
आभास दिल तेरे प्रेम का हर रात में,
आते टिमटिमाटे जुगनू बने मृदुल संदेश दे
नजरें बचाकर चंद्रिका से आते हो तुम,
प्रिय मिलन दिशकश अदा काली निशा
लज्जावनत होती सतत नित व्योम में,
टिमटिमाटे देखते बेशर्म तारे अनगिनत
मचलता है मन अनुराग नित अभिसार को,
मुग्धा परी मैं नूर बन खोयी रहूँ दिलदार मेंll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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