वकील कुशवाहा आकाश महेशपुरी
कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)
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भीतर से मैं टूट चुका हूँ,
आज बहुत रोने का मन है।
दूर कहीं बस्ती से जाकर,
जी भर कर सोने का मन है॥
बहुत देख ली सबकी यारी,
रास न आई दुनियादारी,
झूठे रिश्तों की माया में,
मतलब की है मारा-मारी,
अपना दु:ख अपना है लेकिन,
और नहीं ढोने का मन है-
दूर कहीं बस्ती से जाकर,
जी भर कर सोने का मन है॥
सोच रहा हूँ कुछ दिन तक मैं,
किसी शख्स का मुख ना देखूँ,
मानव निर्मित किसी वस्तु का,
पलभर का भी सुख ना देखूँ,
जो कुछ है दुनिया में अपना,
सब-कुछ अब खोने का मन है-
दूर कहीं बस्ती से जाकर,
जी भर कर सोने का मन है॥
मैं बोता हूँ फूल हजारों,
उग आते हैं शूल हजारों,
मेरे उर में फैल चुके हैं,
चारों तरफ बबूल हजारों,
काँटों का है बिस्तर मेरा,
अब काँटा होने का मन है-
दूर कहीं बस्ती से जाकर,
जी भर कर सोने का मन है॥
कद्र नहीं मेरी है कोई,
नित-नित अपमानित होता हूँ,
भोलापन मेरी कमजोरी,
भोलेपन में सब खोता हूँ,
ग़म के केवल दाग मिले हैं,
मिटे नहीं धोने का मन है-
दूर कहीं बस्ती से जाकर,
जी भर कर सोने का मन है॥
परिचय-वकील कुशवाहा का साहित्यिक उपनाम आकाश महेशपुरी है। इनकी जन्म तारीख २० अप्रैल १९८० एवं जन्म स्थान ग्राम महेशपुर,कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)है। वर्तमान में भी कुशीनगर में ही हैं,और स्थाई पता यही है। स्नातक तक शिक्षित श्री कुशवाहा क़ा कार्यक्षेत्र-शिक्षण(शिक्षक)है। आप सामाजिक गतिविधि में कवि सम्मेलन के माध्यम से सामाजिक बुराईयों पर प्रहार करते हैं। आपकी लेखन विधा-काव्य सहित सभी विधाएं है। किताब-‘सब रोटी का खेल’ आ चुकी है। साथ ही विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आपको गीतिका श्री (सुलतानपुर),साहित्य रत्न(कुशीनगर) शिल्प शिरोमणी सम्मान(गाजीपुर)प्राप्त हुआ है। विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी से काव्यपाठ करना है। आकाश महेशपुरी की लेखनी का उद्देश्य-रुचि है।