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स्वीकारो या उपेक्षित करो

सविता सिंह दास सवि
तेजपुर(असम)

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ये जो संकोच पलता है ना
मन में तुम्हारे,
मेरे अस्तित्व को स्वीकारने या
नकारने के लिए,
इसे तुम थोड़ा-सी ढील दो…
देखो मैं कोई पतंग-सी
उड़ती हूँ,
या तुम्हारे अहं के खूंटे से
बंधी रहती हूँ,
इतना ही तो आकलन है
मेरी इस काया काl

आत्मा तक कहाँ
पहुँच पाते हो,
मेरी आँखों में
तुम्हारा प्रतिबिम्ब
नीले नभ-सा,
और तुम थक जाते हो
मेरे माथे की संकुचित लकीरों में,
ये भी तो उन ज़िम्मेदारियों की देन हैं
जो तुम्हारे साथ मिलीl

जानते हो तुम
ना मैं पतंग हूँ,
ना खूंटे से बंधी कोई
मूक जीव,
मैं तुम्हारे अस्तित्व का
महत्वपूर्ण हिस्सा हूँ,
जन्मों से जुड़ा तुम्हारे साथ कोई
किस्सा हूँ,
स्वीकारने-नकारने से परे हूँ
तुम अपनाओ या,
उपेक्षित करो
हर भाव में बस तुम्हींl

अब आकलन स्वयं का
करो कि मैं,
तुम्हारी आत्मा की प्यास के लिए
कोई छोटा-सा मीठे पानी का
कुँआ बनूँ,
या आडम्बर से भरा
विशाल,खारा समुद्रll

परिचय-सवितासिंह दास का साहित्यिक उपनाम `सवि` हैl जन्म ६ अगस्त १९७७ को असम स्थित तेज़पुर में हुआ हैl वर्तमान में तेजपुर(जिला-शोणितपुर,असम)में ही बसी हुई हैंl असम प्रदेश की सवि ने स्नातक(दर्शनशास्त्र),बी. एड., स्नातकोत्तर(हिंदी) और डी.एल.एड. की शिक्षा प्राप्त की हैl आपका कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में शिक्षिका का है। लेखन विधा-काव्य है,जबकि हिंदी,अंग्रेज़ी,असमिया और बंगाली भाषा का ज्ञान हैl रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में जारी हैl इनको प्राप्त सम्मान में काव्य रंगोली साहित्य भूषण-२०१८ प्रमुख हैl श्रीमती दास की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार करना है। आपकी रुचि-पढ़ाने, समाजसेवा एवं साहित्य में हैl