अरुण कुमार पासवान
ग्रेटर नोएडा(उत्तरप्रदेश)
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रोटी के टुकड़ों से
पेट समझौता कर सकता है,
पेट की आग नहीं।
वो शोलों में तब्दील होने लगती है,
इंतज़ार करने लगती है
एक आँधी का,
कि जिस पर सवार होकर
वो राख कर देगी,
टुकड़े फेंकने वाली उस दुनिया को
जो भूख की आग का
मज़ाक उड़ाती है।
‘इंसान’ कुत्ता नहीं होता,
कि खाया और दुम हिलाया।
इंसान भाव देखता है,पढ़ता है,
रोटी की मात्रा नहीं देखता
देखता है रोटी परोसी जा रही है
या डाली जा रही है,
रोटी की थाली दी जा रही है
या थाली में रोटी पटकी जा रही है।
प्रेम से दी गई सूखी रोटी भी,
प्रेम से चबाकर इंसान
प्रेम-रस से तृप्त हो लेता है,
जबकि घी में चुपड़ी रोटी की हिकारत
चुभती है उसके मुँह,कण्ठ,पेट को;
क्योंकि वो समझता है फ़र्क
हिकारत और सहानुभूति में,
उसकी आत्मा स्वीकार करती है
सिर्फ़ इज़्ज़त की रोटी,
भूख चाहे पेट की हो
या अधिकार की।
परिचय:अरुण कुमार पासवान का वर्तमान निवास उत्तरप्रदेश के ग्रेटर नोएडा एवं स्थाई बसेरा जिला-भागलपुर(बिहार)में है। इनकी जन्म तारीख १७ दिसम्बर १९५८ और जन्म स्थान-भागलपुर है। हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री पासवान ने ३ विषय में एम.ए.(इतिहास,हिंदी व अंग्रेज़ी) और विधि में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्य क्षेत्र-सहायक निदेशक, कायर्क्रम सेवा(सेवानिवृत्त-आकाशवाणी)का रहा है। कविता,कहानी,नाटक,लेख में निपुण श्री पासवान के नाम प्रकाशन में-पितृ ऋण (गद्य),अल्मोड़ा के गुलाब (काव्य संग्रह),७ सम्पादित काव्य संग्रह,३ पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित है। आप एक पत्रिका के सह-सम्पादक होने के साथ ही पोर्टल पर लेखन में सक्रिय हैं। लेखन का उद्देश्य-साहित्य सेवा और पसंदीदा हिंदी लेखक-निराला,दिनकर हैं। आपके लिए प्रेरणापुंज- दिनकर हैं। देश और हिंदी भाषा पर आपकी राय-“भारत सामाजिक समन्वय में विश्वास रखता रहा है। इसकी सांस्कृतिक विरासत का कोई सानी नहीं है। हिंदी भाषा को भारतीय संस्कृति की परिचायक और प्रतिनिधि भाषा कहना उपयुक्त होगा। सहिष्णुता हिंदी भाषा का प्रधान चरित्र है।”