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बधाईयाँ श्रीराम को

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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आज मुक्त हो राम लला,विजयी बन अधिराज।
रामराज्य भारत बने,नव भारत आगाज़ll

सच जीता संकल्प दृढ़,जीता कोशल राज।
जय श्रीराम जयघोष से,अभिनंदित समाजll

लौटी भारत अस्मिता,रामलला सम्मान।
महाविजय भारत प्रजा,संघर्षी अरमानll

पुलकित है माँ भारती,प्रमुदित जन मन देश।
रामलला पा अयोध्या,धन्य हुआ अवधेशll

आज विजय है न्याय का,सत्य त्याग अरु धर्म।
एक राष्ट्र समरस सुलभ,सनातनी सत्कर्मll

शत्रु दमन आतंक का,न्याय गेह अब अंत।
हुआ सफल अभिलाष अब,सिया राम अनन्तll

वोटबैंक नेतागिरी,राजनीति अवसान।
रामलला अभिषेक फिर,कौशल ज्योतिर्मानll

मिटी सियासी चाल अब,मिटे सभी तकरार।
कोटि-कोटि प्रमुदित वदन,मुक्त राम दरबारll

रहे सुखद समरस मुदित,प्रगति चतुर्दिक देश।
लोकतंत्र जनता प्रबल,रहे शान्ति परिवेशll

सत्य सदा सुन्दर शिवम्,मर्यादित आचार।
रामराज्य सम न्याय हो,प्रीति-नीति आधारll

मिटे भेद भाषा जमीं,धर्म जाति उन्माद।
मिली जीत अब राम को,बढ़े राष्ट्र निर्बाध॥

हो सहिष्णु नैतिक प्रजा,राष्ट्र समुन्नत विश्व।
बने धीर साहस विनत,बचे राम अस्तित्व॥

चलें मिलें हर कौम से,रचें राष्ट्र हम एक।
बने भव्य मंदिर पुरम्,करें राम अभिषेक॥

मान दान सम्मान यश,प्रसरित हो मुस्कान।
भरतभूभि सियराममय,हो दीन धरा अवसान॥

कौशलेय कौशलपरी,अभिनन्दन तव देश।
हरो तिमिर दहशत सकल,दो मानव संदेश॥

दे निकुंज प्रभु आपको,बधाईयाँ अपार।
बहु कहर ढाया सितम,रिपुदल जग आधार॥

झूठ कपट धोखाधड़ी,व्याधि मोह आतंक।
हत्या शोषण मद वतन,हरो राम दु:ख रंक॥

जन मन जीवन है मुदित,मुक्ति देख श्री राम।
सजा थाल स्वागत प्रभो,पा कोशल सुखधाम॥

धन्य आज कौशलपुरी,लौटे लखि रघुनाथ।
रामराज्य माँ भारती,भील असुर कपि माथ॥

सजे माँग फिर मैथिली,कोहबर गा जन आम।
दीपों से सज अयोध्या,मनमोहक अभिराम॥

दहशत में लंकेश बहु,त्रासद में गद्दार।
आज विभीषण अधिकतर,भेदिया बन संसार॥

शीत ताप वृष्टि सदा,असहाय निज गेह।
नज़रबंद आहत प्रभो,नीरज सम निज देह॥

त्याग शील परहित गुणी,भक्ति विनय रघुराज।
अभिनंदन हिन्दू वतन,रामलाल जय आज॥

तिलक लगा कौशलपति,चारु मुकुट धरु माथ।
कवि निकुंज मन भक्तिमय,रक्ष वतन श्रीनाथll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥