चीन की वुहान-भूमि से उपजा ‘नॉवेल कोरोना’ विषाणु आज दुनिया के लिए मृत्यु का पर्याय बन गया है। वुहान शहर मृतप्राय पड़ा है। स्पेन,इटली और अमेरिका तड़पकर गिरते शवों की अन्त्येष्टि नहीं कर पा रहे हैं। पाकिस्तान,अफगानिस्तान,बर्मा जैसे लडखड़ाते देश गौरतलब नहीं रहे। भारत इक्कीस दिनों की घोषित ‘तालाबंदी’ एवं स्वैच्छिक कर्फ्यू में छटपटा रहा है,लेकिन मन प्रखर उम्मीद की किरण से जगमग है कि ‘हम होंगे कामयाब एक दिन….।’
इक्कीसवीं सदी का बीसवाँ वर्ष वैश्विक स्तरीय मंदी के लिए ही जाना जाता,अगर कोरोना नामक महामारी न आई होती। कोरोना ने मंदी का एकाधिकार छीनकर हमें न केवल आर्थिक,बल्कि सामाजिक रूप से भी कमजोर किया है। उन्नति के शिखर को छूने के सपनों को अकाल ही तोड़ने का दुस्साहस किया है। धर्म और विज्ञान के बीच अविश्वास एवं संदेह ने कई भ्रांतियों को उपजाया है।
कोरोनो विषाणु से लड़ने के लिए हमें सामाजिक स्तर पर बेहद सतर्क एवं सचेत रहकर बहुमुखी सहयोग की आवश्यकता है। यह ऐसा शत्रु है जिसे हम बिना पैसा खर्च किए ही घर में पृथक-पृथक रहकर हरा सकते हैं। प्यार,अपनापन और विश्वास जैसे सामाजिक उपकरणों के सहारे एक-दो गज की दूरियाँ बनाकर हम कोरोना को मात दे सकते हैं। हम जिस संसाधन में सक्षम हैं, उसके द्वारा पड़ोसियों की मदद करके बहुत आसानी से आत्मसंतोष प्राप्त कर सकते हैं। सनद रहे कि आज के दौर में हम स्वयं में एक शांत ज्वालामुखी हैं,जो अनियंत्रित होने पर लाखों लोगों को काल के गाल में पहुँचा सकते हैं। ठीक ऐसे ही हर व्यक्ति अपने-आप में मौत का सौदागर है,जिससे दूरी बनाकर आसानी से बचा जा सकता है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चीन मानवता के संहारक के रूप में उभरा है। इसके पीछे कोई अनियंत्रित कारण हैं,या सुनियोजित दानवी कुटिलता,अभी कहना जल्दबाजी होगी। दुनिया के हर देशों में कमोबेश पहुँचे हुए कोरोना की पहुँच चीन के ही अन्य शहरों और राजधानी तक नहीं है,सोचने को विवश करती है। विश्व की उखड़ती अर्थव्यवस्था के बीच चीन की आर्थिक उछाल किसी जादुई करामात की आहट का संकेत करती है,जो यूएनओ की तीक्ष्ण नज़रों से भी छुपा नहीं है।
हमारा इतिहास उत्थान और पतन के झूले पर झूलता ही आया है। बारह सौ साल की घटती-बढ़ती गुलामी में कई उजड़े पतझड़ और कई लहलहाते बसंत हमने देखे हैं। फिर भी हमारी हस्ती पहले से ज्यादा मजबूत हुई। विविधता में एकता को जीया है हमने। रक्तबीज की तरह भयावह यह चीनी विषाणु नि:संदेह चिंताजनक है। कदाचित,चीनी विश्वविजय की मंशा का भी परिचायक हो किन्तु हमारा आत्मविश्वास ऊँचा है,हमने विश्वविजय पर निकले सिकंदर को भी भगाया है, सात समंदर पार के लाल-लाल लट्टुओं से भी खेला है। प्लेग,चेचक,डेंगू, मलेरिया,पोलियो और एड्स को भी धराशायी करने का कीर्तिमान है हमारे पास। सामाजिक विषमता में भी समरसता फैलाई है हमने। एक रोटी में भी चार टुकड़े करके दान करने तथा घास की रोटी खाकर हल्दी घाटी विजय करने वाले हैं हम।
अन्तत:,हम कहना चाहेंगे कि चीनी विषाणु नॉवेल कोरोना निश्चित रूप से मौत का सौदागर बनकर आया है। इसे हम
जागरुकता फैलाकर,अकेले में साफ-सफाई से रहकर मिटा सकते हैं। धैर्य के साथ हमें हमारी मानवता को जिंदा रखना है। यही मानवता सामाजिक व आर्थिक क्षति की पूर्ति करके पुन: हमें आगे बढ़ने में सहायक बनेगी। दुनिया नई बनाएँगे,कोरोना को हराएँगे।
परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दी
पिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है।