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चेतो अब भी,रे मनुज!

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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प्रकृति कुपित हमसे हुई,भला करे भगवान।
झेल रहा जग दंश को,अब तो बन इन्सान॥

भौतिकता परवान पर,बनी प्रकृति सुनसान।
देख फलाफल स्वार्थ का, ‘कोरोना’ हैवान॥

हरित भरित सुष्मित धरा,आज बनी लाचार।
कोराना से सिसकती,लखि दुनिया संहार॥

कौन बचाए आपदा,विज्ञान या भगवान।
रह नर निर्मल गेह में,दूरी का रख ध्यान॥

जिसने दी सौगात में,हरित-भरित संसार।
किया नाश उस प्रकृति का,कैसे हो उद्धार॥

पला बढ़ा जन्मा जहाँ,रची स्वयं तकदीर।
दी धोखा गद्दार बन,कैसी हो तस्वीर॥

दोष न दो कोई इतर,दोषी खुद को मान।
सावधान नित स्वच्छता,मददगार सम्भाव॥

जीतेंगे रण आपदा,कोरोना आतंक।
जले आज ख़ुद के हवन,चाहे राजा रंक॥

लुटी देख निज अस्मिता,उजड़ा रम्य निकुंज।
कुपित प्रकृति ढाती कहर,कहँ खगद्विज अलिगुंज॥

चलो करें परिताप मिल,करें प्रकृति श्रृंङ्गार।
लगा वृक्ष नद जल सरित,रक्षण बस उपचार॥

चेतो अब भी,रे मनुज,करो प्रकृति सम्मान।
चलो साथ सरकार के,रखो गेह अलगाव॥

नीति-रीति जीवन चरित,भूला मानव लोक।
याद करे भगवान को,कर रक्षण हर शोक॥

दिनचर्या में कीजिए,आवश्यक बदलाव।
साफ सुघर दूरी रखो,बच कोरोना घाव॥

चलें साथ मिल जन वतन,बन निर्माणक देश।
कोरोना अवसाद से,दें मानव संदेश॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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