मुद्दा-हिन्दी का घर बाँटने वाले सांसद….
डॉ.शंकर लाल शर्मा(उप्र)–
हिंदी को अंग भंग करने की साजिश को हमें सफल नहीं होने देना है। हिंदी अपनी उपभाषाओं एवं बोलियों के साथ स्वस्थ है। जिन सांसदों को सही से हिंदी बोलनी नहीं आती,वे भोजपुरी का एक वाक्य रोमन में लिखकर इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की वकालत कर रहे हैं।इससे हिंदी भाषियों की संख्या घटेगी, उसकी सहभाषाओं,उपभाषाओं और बोलियों के मध्य मैत्री भी आहत होगी। हम सबको इस विषय पर अपने-अपने स्तर से आवाज उठानी है। अपने जनप्रतिनिधियों को प्रत्यावेदन देकर विधान सभाओं और संसद तक आवाज पहुँचानी है। जय हिंदी। जय देवनागरी। जय भारतीय भाषाएं।
प्रभात वर्मा(उप्र)–
डॉ. अमरनाथ जी,सादर नमस्कार। मुझे हर्ष हो रहा है कि आपने भोजपुरी भाषा के आठवीं अनुचूची में शामिल किए जाने की वकालत कर रहे सांसदों की समुचित आलोचना के साथ हिंदी के कमजोर होने पर विधिवत प्रकाश डाला है। आपके तर्क ने मुझे भीतर तक प्रकाशित किया है। मुझे इस बात का भी गुमान हो रहा है कि आप मेरे गोरखपुर की मिट्टी से ही हैं। पुनः आपको अभिवादन।
बिक्रम शॉ–
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से विनम्र निवेदन है कि कृपया हम भारतवासियों को अंग्रेजी भाषा की गुलामी से मुक्त कराने और भारतीय भाषाओं के बीच अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी को संपर्क भाषा बनाने का सार्थक प्रयास करें।
प्रकाश जी–
डॉ.परमानन्द पाण्डेय ने लोकभाषाओं के विकास की बात करते हुए राष्ट्र भाषा हिन्दी को सर्वोपरि माना था। अंगिका,भोजपुरी, मगही आदि ने कभी अपने को हिन्दी से अलग नहीं माना। आज कुछ तथाकथितों का अष्टम सूची,अष्टम सूची चिल्लाने का रोजगार बनी हुई है।
(सौजन्य:वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुम्बई)