कविता जयेश पनोत
ठाणे(महाराष्ट्र)
**************************************************
दुनिया में अपनी जिन्दगी के फैसले,
किसी और के हाथों में न सौंप देना
साहेब ये खुदगर्ज दुनिया है,
यहाँ मतलब पूरा हो जाने पर
लोग साथ छोड़ जाते हैं,और
जिन्हें अपना समझ हाथ थामा था।
और वो हाथ भी छूट जाते हैं,
और हम अकेले आए थे इस जहाँ में
अकेले ही रह जाते हैं।
यही सच है इस दुनिया का,
और यही फितरत है संसार के
रिश्ते-नातों की।
इसीलिए कहती कि कविता,
मय प्याले में उतना ही भरना
जितना पी सको,
अपने आपको उस नशे के बिन,
भी सम्हाल सको।
अपनी जिन्दगी के रथ के,
बन सारथी तुम
जीवन के कुरुक्षेत्र में,
अर्जुन बन अपना गांडीव उठा सको॥