गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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जीवंत शिव जब प्यासा है,
थोड़े पानी की ख़ोज में फिरता है
व्यथा है आडम्बर से पूजन का चल-
पत्थर के माथे पर डालता है शीतल जल।
प्रखर तेज ग्रीष्म की,प्रवाह तप्त वायु की,
त्रस्त है धूल धूसरित श्रमवीर,पथचारी
प्यास से फटते हैं प्राण घुमन्तु शिवों के-
आशा है थोड़े-से शीतल पानी की।
पर,कौन बुझाएंगे प्यास इनकी,
इनको सफाई का ज्ञान ही नहीं
इनसे हो सकता है रोगों का संक्रमण-
सभ्य समाज का ऐसा है कथन।
हे,अपना प्राणप्रेमी दिग्गज जन,
जरा सोचो चलित विचारों से हट कर
तकलीफ जीवंत शिवों का कीजिए चिंतन-
कीजिए अर्जन पुण्य का,इनको जल दान कर।
कभी याद करें अपने पूर्वजों के विचार पर
अन्न जल दान करते थे हाथ खोलकर।
नहीं किए विचार जात-पात की,
इंसानों में उनको दर्शन हुआ शिव का॥
परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।