मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……
ट्रेन में चढ़ते ही शिक्षिका अपने साथ पिकनिक में जाने वाली कॉलेज की लड़कियों की गिनती करने लगीं..और फ़िर घबराकर उन्होंने सब लड़कियों से कहा-“अरे,ये निधि कहाँ रह गई..वो आई तो है,मैंने कुछ देर पहले ही उसे देखा था..!”
शिक्षिका की बात सुनते ही सभी बारी-बारी से उसे फ़ोन लगाने लगीं… फ़ोन लगते ही शिक्षिका ने निधि से घबराते हुए कहा-“ट्रेन छूटने का समय हो रहा है.. कहाँ हो…? जल्दी आओ भई ..!”
तभी उन्होंने देखा..हांफते हुए…अपने हाथ में कुछ पुस्तकें दबाए निधि डिब्बे में चढ़ी..। उसे देखते ही
शिक्षिका ने निधि के हाथ से बैग और उसके हाथों की पुस्तकों को लेकर उसे बैठने में मदद की.., लेकिन तभी उन्होंने ग़ौर किया कि,निधि की पुस्तकों को देख कर कुछ लड़कियाँ अपना आड़ा-टेढ़ा मुँह बनाने लगीं,तो कुछ उसकी खिल्ली उड़ाते हुए उससे कहने लगीं-“ज़माना कहाँ से कहाँ निकलता जा रहा है,पर हमारी ये बुढ़िया कहीं भी पुस्तकें देखी नहीं कि..उसे ख़रीदने के लिए पागल हो जाती है..!”
तभी श्वेता ने निधि को चिढ़ाते हुए कहा-“अरे मेरी माँ,आजकल मोबाईल में सब-कुछ तो है,फ़िर ये क्या पागलपन है…ट्रेन छूट जाती तो…!”
ये सुनकर निधि मुस्कुराते हुए बोली-“कुछ चीज़ों की एक ख़ास अहमियत होती है…और मैं मानती हूँ कि मोबाईल में सब-कुछ मिलेगा…पर मैं इसका इस्तेमाल सिर्फ़ गूढ़ शब्दों के अर्थ जानने के लिए ही करती हूँ,और किताबों का तो एक अलग ही महत्व है…। भले ही इससे किसी भी विषय की जानकारी तुरंत उपलब्ध हो जाती है,पर पुस्तक की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता..। भई…मेरी तो ये सच्ची साथी है..!”
तभी शिक्षिका ने देखा,निधि की बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए उसकी कुछ सहेलियाँ अपने चेहरे के भाव बदल बदल कर सेल्फ़ी लेने में व्यस्त हो गईं,तो वहीं कुछ सहेलियाँ शोर मचाती हुई अलग-अलग पोज़ देने में…परन्तु निधि उन सबसे बेख़बर अपने हमसफ़र को सहेजने में…!
परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”