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पुस्तक है प्राण

कुसुम सोगानी
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……

शायद नहीं मैं बचती,
पुस्तक जो तुम न होती
‘कोरोना’ के इस दौर में,
आफ़त की मारी फिरती।
न पैसा काम आता,
ना भाई पिता ना माता
दूरी बना कर रखना,
नियम का पालन करना
अकेले ही सब कुछ करना,
मजबूरी होती सहना
पर प्यारी मेरी पुस्तक,
पल-पल में साथी बनकर
कभी नींद को बुलाया,
कभी उपचार भी बताया
दु:ख निवारण हेतु,
अध्यात्म भी सिखाया।
व्यस्त रहने को सदा,
हर समय मेरे साथ थी
मैंने तवज्जो दी ना थी तब,
बिना बदले साथ थी अब।
हर एक पन्ने ने मेरा,
हर दिन उजाला भर दिया
धूल में रहकर भी तुमने,
झाड़ मेरा मन दिया।
कितने गिनाऊँ फलसफे,
क्या न पाया मैंने तुमसे
धैर्य साहस घर प्रबंधन,
फिर सम्हाला पढ़ तुम्हें।
पुस्तक तुम्हारा करती हूँ,
आभार वंदन नित प्रति।
तुम्हीं मेरी संस्कृति,
तुम्हीं मेरी ईश,तुम्हीं जगती॥

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