इंदौर (मप्र)।
उनकी रचनाओं में कल्पना और वास्तविकता का अद्भुत संगम है। उन्होंने संस्कृत में भी रचनाएं लिखीं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. अग्निशेखर ने यह बात श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर द्वारा कालजयी रचनाकारों की श्रृंखला में बाबा नागार्जुन के साहित्यिक कृतित्व पर कही। आपने उनके साथ हुई मुलाकातों का विशेषकर क्षमा कौल के साथ कुछ रोचक प्रसंग भी सुनाए।
वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर, श्रीमती मणिमाला, डॉ. सुनीता फडनीस, मुकेश तिवारी और मौसम राजपूत आदि ने भी अपने विचार में बताया कि बाबा नागार्जुन की रचनाएं वास्तविक सत्य से ओत-प्रोत रहीं और उन्होंने जो देखा होगा, सहा उसे निर्भीकता के साथ लिखा। इसीलिए आज भी जीवंत हैं। १९११ में जन्में वैद्यनाथ मिश्र, जिनके कई नाम जीवन में रखे गए। जैसे- चाणक्य, फक्कड़ बाबा और अंत में प्रसिद्ध हुए ‘बाबा नागार्जुन’ के नाम से। व्यंग्य में एक जगह वे कहते हैं- “रानी आओ हम ढोयेंगे पालकी।” वो सत्ता के साथ जुडे रहने वाले कवि नहीं थे, बल्कि जनपक्ष के कवि थे इसीलिए अपनी रचनाओं को व्यंग्य के माध्यम से भी कटाक्ष करने से नहीं चूकते थे। ‘तीनों बंदर गांधी के’ जैसी रचनाएं इसका ज्वलंत उदाहरण है।
इस अवसर पर अग्निशेखर का स्वागत समिति के प्रधानमंत्री अरविंद जवलेकर ने किया। संचालन डॉ. पुष्पेन्द्र दुबे ने नार्गाजुन की कई कविताएं उद्धृत करते हुए किया। आभार हरेराम वाजपेयी ने व्यक्त किया।