रश्मि लहर
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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न होती थीं दिलों में रंजिशें, एतबार होता था।
कभी तो बन्दगी होती, कभी मनुहार होता था।
निगाहें बात करती थीं, पलक पर भार होता था।
सँवर जाता था हर लम्हा, कि जब दीदार होता था।
बड़ी नाज़ुक-मिज़ाजी थी, शुऊरे-ज़िन्दगी में भी,
कि इक ज़िंदादिली-सी थी, अजब अधिकार होता था।
गले मिलने की चाहत में, ज़माने बीत जाते थे,
बॅंधे रहते थे दो मन, भाव का सत्कार होता था।
समुन्दर ताजपोशी कर गले मिलता था लहरों से,
अदब की सरपरस्ती से भरा किरदार होता था॥