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विघ्न हरो हे मोदक दाता

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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गणेश चतुर्थी विशेष…

संकटमोचक गौरी नंदन
प्रथम पूज्य हे भाग्य विधाता।
मंगलकारी देव गजानन
विघ्न हरो हे मोदकदाता॥

वक्रतुंड हे अष्टविनायक,
करते हम सब मिल अभिनंदन।
करो काज संपूर्ण अधीश्वर,
अर्चन नमन करें सब वंदन॥
आना बारंबार गजानन,
रिद्धि-सिद्धि के तुम हो दाता।
मंगलकारी देव गजानन,
विघ्न हरो हे मोदकदाता….॥

दीनबंधु गजबदन विनायक
मात-पिता के आज्ञाकारी।
नादप्रतिष्ठित हे दयानिधि,
पहली पूजा के अधिकारी॥
जय शूर्पकर्ण हे महाकाय,
तुमसे सदा पिता का नाता।
मंगलकारी देव गजानन,
विघ्न हरो हे मोदकदाता…॥

गणाध्यक्ष लंबोदर गणपति
वरदविनायक विघ्नविनाशन।
मूषकवाहन हे प्रथमेश्वर,
कर दो कारज सिद्धशुभानन॥
गौरीनंदन श्वेतांबरधर,
करता भक्ति वही फल पाता।
मंगलकारी देव गजानन,
विघ्न हरो हे मोदकदाता…॥

एकदंत हेरंब महाबल,
काटो सारे जग के बंधन।
शुद्ध-बुद्धि निष्पाप हृदय दो,
शिव शम्भू सुत गौरी नंदन॥
सुख आनंद मिले जीवन में,
जो कोई भी तुमको ध्याता।
मंगलकारी देव गजानन,
विघ्न हरो हे मोदकदाता…॥

देवों में जो प्रथम पूज्य हैं,
विश्वरूप पीतांबरधारी।
गणनायक वरदायक देवा,
पूरी करते इच्छा सारी॥
भाव कृपा का रखते हिय में,
विघ्नहरण सुख संपतिदाता।
मंगलकारी देव गजानन,
विघ्न हरो हे मोदकदाता॥

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा) डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बड़ियाल कलां,जिला दौसा (राजस्थान) में जन्मे नवल सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी.,साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ से अधिक पुस्तक प्रकाशित हैं। आपकी कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो,
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’