सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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जीवन जिंदगी में हो सत्य-अहिंसा,
परमोधर्म का संचार हरपल सौम्य
सशक्त जागरूकता की ओर प्रभु मेरे,
चल पड़े हैं हम हमसफर हमराही बने।
दीर्घायु हों, शतायु बने सतत् संतप्त,
हर मोड़ पे प्रतिभा संयम में
संतुलित हो सुपथ की ओर प्रभु मेरे,
चल पड़े हैं हम…।
शब्द के शब्दों में हो निखार साहित्य,
के अविचल अविरल संघन्य सुकर्म
धर्मों का मुक्तांचल की ओर मेरे प्रभु,
चल पड़े हैं हम…।
मानवीय इंसानियत की शौर्य क्षमता,
के उद्गार हो दरिद्रता उन्मूलन में
जग-जन के उद्धार की ओर मेरे प्रभु,
चल पड़े हैं हम…।
औ अखंड साहित्यांगन में,
वो पुष्प खिले स्वर्णीय स्वर्णिम
सौंदर्य हर्षित भावना की ओर मेरे प्रभु,
चल पड़े हैं हम…।
राष्ट्रहित में ही हो हमारा हर संकल्प,
स्वयं समाज शिक्षित बने संस्कृति
सभ्यता व संस्कार की ओर मेरे प्रभु
चल पड़े हैं हम…।
जिंदगी लम्बी ही हो, व्यक्तित्व कृतित्व,
के संयोजित धारा प्रवाहों में संलग्न
साहित्य शब्द लहरों की ओर मेरे प्रभु,
चल पड़े हैं हम…।
धन्य! धन्य! हो जाए ये धरती सूर्य से,
आलोकित पतित पावनी गंगा की।
सु-सरित जलधारा की ओर मेरे प्रभु,
चल पड़े हैं हम हमसफर हमराही बने॥
परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।