कुल पृष्ठ दर्शन : 31

You are currently viewing यह कैसा धर्म प्रचार ?

यह कैसा धर्म प्रचार ?

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

*************************************************

कहाँ बची इन्सानियत, कहाँ आपसी मेल।
बनते ढोंगी साधुजन, करे मौत अठखेल॥

धर्म प्रचार के नाम पर, घूम रहे शैतान।
महा मौत फैला रहे, बने साधु हैवान॥

छिपा रहे बन संक्रमित, घूमे देश-विदेश।
खेले जन जज़्बात से, दे विनाश संदेश॥

दुश्मन ये इन्साननियत, शत्रु बने ईमान।
ढोंग साधु यमदूत बन, निगल रहे इन्सान॥

पाखंडी दे त्रासदी, मचा रहे कोहराम।
देखो जु़र्रत नकलची, करते छिप विश्राम॥

ठोको उन पर कानूनी, देशद्रोह का केस।
दुश्मन बन भारत चमन, उड़े कीट विष देश॥

फैल रहा यह वायरस, नकली साधु ज़मात।
घूम रहे कुछ सिरफ़िरे, दे जीवन आघात॥

रखे ताख निर्देश जो, सख़्त बनो सरकार।
उद्यत डँसने को भुजग, कुचलो फन गद्दार॥

संस्कार बिन संक्रमित, बढ़ी मौत तादाद।
कैसी जलसा मज़हबी, करे मनुज बर्बाद॥

दिखा रहा ठेंगा नियम, था मरगज़ शैतान।
बाँट रहा नफ़रत वतन, राष्ट्र धर्म अवमान॥

जानबूझ साजीश रच, मिल विदेश के संग।
बुला मज़हबी कौम को, झोंक संक्रमण जंग॥

कैसा धर्म प्रचार यह, कैसा अन्ध विश्वास।
मानवीय संवेदना, नहीं नीति अहसास॥

महती विपदा में फँसी, जनता सह सरकार।
दहल रही कवि भावना, आगत मौत बहार॥

रोको थामो रे मनुज, मिलकर चल सरकार।
बंद करो हठधर्मिता, स्वस्थ गेह रह यार॥

बदल रहा व्यवहार अब, दैनन्दिन इन्सान।
मिथ्या छल हिंसा कपट, बने साधु भगवान॥

भक्षक मत रक्षक बनो, मानवता संसार।
पाखंडी हर साधु खल, उसका कर संहार॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥