डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी (राजस्थान)
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कौन-सा भारत मेरा है ?
इधर महाकुंभ त्रासदी
उधर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी,
इधर जनसैलाब की चीखें
उधर पर्यटन की चकाचौंध,
इधर धूल, भीड़, बदइंतज़ामी
उधर ऊँचाई, भव्यता, महिमा,
इधर मिट्टी में सने पाँव,
उधर आसमान छूते सपने।
कौन सा भारत मेरा है ?
जो दर्द में डूबा है,
या जिसका गौरव से सर ऊँचा है ?
जो भीड़ में खोया है,
या जो शिखर पर सोया है ?
दो भारत, दो तरह का भारत,
दो तरह की तस्वीर,
एक तरफ़ ‘श्रेष्ठ भारत’ की बहती समीर।
गगनचुंबी इमारतें, तकनीक का श्रृंगार,
दुनिया को दिखाने को डिजिटल अवतार
दूसरी तरफ वहीं भारत खड़ा उदास,
जहाँ भूख से हारे चेहरे, जहाँ टूटा विश्वास
कुंभ के घाटों पर भीड़ का समंदर,
श्रद्धा के प्रवाह में बहते भटके दर-बदर।
एक भारत जिसे ‘विकसित’ कहकर पुकारा,
दूसरा वही जो सदियों से हाशिए पे उतारा
सड़कों पर लहलहाते ब्रांडेड पोस्टर,
फुटपाथ पर भूखे बच्चे, निर्वस्त्र, बेबस बदतर
राजनीति की रैलियों में झूमते हजार,
पर अस्पतालों में सिसकते बीमार।
एक तरफ़ भारत, जो हरित क्रांति का गीत गाता,
दूसरा वही, जो किसान की आत्महत्या पर आँसू बहाता
दो भारत, दो तक़दीरें, दो अलग कहानी,
एक चमचमाता शो-रूम, दूसरा मौन आँखों में पानी,
पर मैं किसे कहूँ भारत ?
मैं किसे मानूँ सच्चा ?
वह जो काग़ज़ पर ‘महा-शक्ति’,
या वो जो भूख से मरता बच्चा…?