ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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घोला प्रेम रंग रस थोड़ा,
डूब प्रेम में प्रेम निचोड़ा
प्रेम धूप रख प्रेम सिखाते,
आया है फरवरी माह निगोडा़…।
प्रेमरोग हर दिल में छाया,
उस पर बसंत यह बौराया
प्रेम उगा सरसों खेतों में,
प्रेम पलाश गिराया ओढ़ा…।
प्रेम बूंद बादल से बरसे,
प्रेम बरसा प्रेम को तरसे
प्यार प्रेम की इस आँधी ने,
कोई स्थान नहीं है छोडा़…।
नफरत से तो प्रेम भला है,
खिला प्रेम है प्रेम फला है।
प्रेमगीत गाती है कोकिल,
प्रेम ओर हर दिल को मोड़ा…॥
परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।