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क्या बाप का नाम जरूरी… ?

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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ऊपर की कोठरी से सिसकने के साथ-साथ बतियाने की आवाजें आ रही थी।

“तुम ठीक कहती थी दादी। सच में औरत का सबसे बड़ा दुश्मन उसका शरीर होता है। अगर तो वह कुछ सुंदर हुआ, तो तब तो और भी आफत समझो।”
“मैं तो तुझे कब से समझा रही थी बेटी, पर तब तो तेरे सिर पर इश्क़ का भूत सवार था। अब क्या करें ?”
असल में चम्पा और चम्पा की दादी आपस में बतिया रही थी। चम्पा जीवन लाल के साथ ‘रिलेशनशिप’ में रह रही थी। इस बीच चम्पा गर्भ से हो गई। सालभर साथ रहने के बाद जीवन लाल का अफेयर किसी और लड़की से चल पड़ा और दोनों ने इस गुत्थमगुत्था में ब्रेकअप कर लिया। चम्पा की दादी ने गर्भ गिराने की बड़ी कोशिश की, पर चम्पा को पेट में पल रहे बच्चे से प्यार-सा हो गया था। उसने अपनी ज़िंदगी की परवाह किए बगैर ही ममता के पावन भाव में सुंदर-सी कन्या को जन्म दिया। भारतीय ग्रामीण सामाजिकता की विडम्बना देखिए, कि आज हर कोई आपस में फुसफुसाता है, कि बिन बाप की बेटी जन दी निगोड़ी ने। जरा-सी भी शर्म नहीं रही करमजली को।
ये बातें गाहे-बगाहे दादी और चम्पा दोनों सुनती रहती थी एवं बहुत आहत थी। उस रोज चम्पा शहर गई थी। लौटती बार आज फिर से उसने रास्ते में ऐसी बातें कुछ महिलाओं से ही सुनी थी। वे भी चम्पा की रिश्तेदारी की ही औरतें थी। किसी ने चम्पा से कहा होगा,-“क्यों री करमजली ? तेरे बड़ी नई जवानी आई क्या ? किसका नाम देगी अब बेटी को ? नाक काट ली हम सबकी।”
यह ‘किसका नाम देगी बच्ची को’ वाली बात चम्पा ने कई स्त्री और पुरुषों से सुन ली थी। अब वह दादी से सिसकते-सिसकते पूछ रही थी,-“दादी क्या बाप का नाम होना जरूरी है ?”
“हाँ बेटी! बिन बाप की औलाद नकदी होती है। उसे ज़िंदगीभर गोते खाने पड़ते हैं।” दादी ने अपना अनुभव बताया।
“क्या माँ का नाम औलाद के लिए कोई मायने नहीं रखता ?” चम्पा बोली।
“बाप के नाम की जगह माँ का नाम नहीं ले सकता बेटी।” दादी रुंधे कंठ से बोली ।
“पर क्यों दादी!” चम्पा बोली।
“तू नहीं समझेगी बेटी ?” यह कहते कहते दादी रो पड़ी।
“दादी यह बच्ची पैदा तो हम दोनों ने की, पर उस पर समाज मुझे तो तरह-तरह की बातें कह रहा है। जीवन को क्यों नहीं कुछ बोलता ? उससे तो कमला ने शादी भी कर ली। और मुझे लड़के नीची नजरों से देखते हैं। क्यों ?” चम्पा झुंझला कर बोली।
“वह पुरुष है बेटी। इसी लिए तो कहती हूँ कि औरत की सबसे बड़ी दुश्मन उसकी देह होती है। अब तू समझ गई होगी।” दादी बोली।

यह बोलते-बोलते दादी-पोती दोनों रो रही थी। शायद वे अब यूँ ही आजीवन रोती रहेंगी।