जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…
कोरोना के भय में भटकी रीत सुहानी होली की।
दिल्ली के धरनों ने सटकी प्रीत पुरानी होली की॥
केसर घाटी सुलग रही थी पिछले सत्तर सालों से।
हटी तीन सौ सत्तर धारा नयी कहानी होली की॥
माथे का सिंदूर मिट गया जाने कितनी बहनों का।
मजहब का उन्माद ले उड़ा नीति रूहानी होली की॥
देश प्रेम का फ़ाग नहीं है कुर्सी का है राग यहाँ।
नेताओं ने अपनी अपनी चादर तानी होली की॥
ये हलचल ये कोलाहल क्यों एमएसपी पर मची हुई।
इसको अपनाने में है क्यों नाफ़रमानी होली की॥
दुश्मन की धरती पर जाकर हमने बीन बजाई थी।
नाग सैंकड़ों बिल में मारे शक्ति बखानी होली की॥
बोतल में तेजाब भरा है रंगों में बारूद घुला।
पुलिस पिट रही चौराहों पर बात न मानी होली की॥
रंग गुलाल लगा कर भाई मुखड़ा दर्पण में देखो।
सबका चेहरा दिखे तिरंगा कारस्तानी होली की॥
रामलला पे हुआ फैसला ‘हलधर’ सबने अपनाया।
हमने दुनिया को सौंपी है नयी निशानी होली की॥