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पायल की पीड़ा

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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मेरे पाँव की पायल भी,
बेबस और मजबूर हो गयी…
मुस्कुराने की चाहत थी,
मगर उदास हो गयी।

तुम्हारे इंतज़ार में यह,
इस जहां से बेजार हो गयी है…
खनकती इसकी सदा भी,
दर्द के साज में बदल गई है।

मचलती है बेपरवाह-सी,
मगर एक आह भी संग आती है…
आज पैरों में आई तो मगर,
तुम्हारी ताल को तरस गयी है।

बजना चाहती है छुन-छुन,
खामोश मगर रह जाती है…
बदले जमाने की नारी की,
चाल से सुर-ताल न मिला पाती है।

बदल गया यह जमाना और,
बदली नारी की चाहत भी है…
पायल की जगह अब देखो,
काले से धागे ने ले ली है।

मन ही मन बड़ा खार खाती है,
काले धागे को बद्दुआ से नवाजती है…
पी का प्रेम जो पायल वाली को मिले,
काले धागे वाली उस प्रेम को तरसती है॥

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।

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