राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी..
इंदौर (मप्र)।
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित ‘किलकारी’ राष्ट्रीय बाल साहित्य संगोष्ठी न केवल साहित्यकारों और बाल साहित्य प्रेमियों को एक मंच प्रदान करने का प्रयास था, बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों के लिए साहित्य के महत्व को बढ़ावा देना और नवाचार लाना था। यह कार्यक्रम ‘देवपुत्र’ के सम्पादक रहे कृष्ण कुमार अष्ठाना की स्मृति में आयोजित किया गया, जो बाल साहित्य में योगदान को आजीवन समर्पित रहे। इस आयोजन से बाल साहित्य की नई दिशा और प्रेरणा मिली है।
संवाद नगर में २२-२३ मार्च को हुई इस संगोष्ठी का मुख्य केंद्र बिंदु उन तरीकों पर था, जिनसे बाल साहित्य बच्चों की रचनात्मकता और संस्कृति के प्रति जुड़ाव को बढ़ा सकता है। इसमें बाल साहित्य के हर पहलू को समेटा गया एवं इसे आधुनिक समय की चुनौतियों और संभावनाओं से जोड़ा गया।
🔹प्रथम संगोष्ठी में बाल साहित्य में संस्कृति विमर्श-
इसमें शिव मोहन यादव, रजनीकांत शुक्ल, शीला मिश्रा, सत्यनारायण सत्य, और घनश्याम मैथिल ‘अमृत’ ने बच्चों को साहित्य के माध्यम से संस्कृति से जोड़ने पर विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि कैसे बाल साहित्य को जड़ों से जोड़ते हुए आधुनिक आवश्यकताओं के साथ सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। तत्पश्चात ‘भारत का भविष्य गढ़ता बाल साहित्य’ विषय पर शशि पुरवार और डॉ. प्रीति प्रवीण खरे ने बाल साहित्य के सामाजिक और शैक्षिक महत्व पर जोर दिया। ‘बाल साहित्य की भाषा’ पर इस सत्र में वर्षा कोस्टा, कीर्ति श्रीवास्तव और नीना सिंह सोलंकी आदि ने कहा कि बच्चों की रुचि बढ़ाने के लिए भाषा का सहज और प्रभावशाली होना जरूरी है। ‘बाल साहित्य गढ़ता बचपन’ पर ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ने इस विषय पर गहन उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया कि बाल साहित्य न केवल बच्चों के मनोरंजन का साधन है, बल्कि उनके जीवन मूल्यों को विकसित करने का सशक्त माध्यम भी है।
🔹यह हुए सम्मिलित, दिया योगदान-
पत्रिका ‘देवपुत्र’ के सभागार में इस कार्यक्रम में देशभर के प्रसिद्ध बाल साहित्य मर्मज्ञों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कार्यक्रम की गरिमा को और बढ़ाया। इसमें नंदकिशोर निर्झर, समीर गांगुली (मुम्बई), दीनदयाल शर्मा (राजस्थान), डॉ. पूजा अलापुरिया (मुम्बई) और श्रीमती समीक्षा तैलंग (पूना) आदि द्वारा प्रस्तुत विचारों ने बाल साहित्य के विभिन्न पहलुओं जैसे संस्कृति, भाषा, और आधुनिक तकनीकी युग में इसकी प्रासंगिकता पर ध्यान केंद्रित किया।
🔹अनेक पुस्तक विमोचित-
कार्यक्रम में ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ के बाल उपन्यास ‘दोस्ती का सफर’ का विमोचन किया गया तो अन्य पुस्तकों मुख्यत: ‘क्षितिज की ओर’, ‘देवपुत्र’, ‘सपने’, ‘हिंदी के बाल नाटक’ आदि का भी विमोचन किया गया।
🔹बाल साहित्य और बच्चों के विकास पर प्रभाव-
संगोष्ठी के दौरान, बाल साहित्य के बच्चों के संपूर्ण विकास में योगदान पर चर्चा की गई, जिसमें सृजनात्मकता, सांस्कृतिक जुड़ाव एवं सामाजिक विकास आदि है।