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अर्पित कर देती सारी समिधाएं

संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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आसमां की अनंत गहराइयों में, खोयी कोई आत्मा जब प्रवेशती है माँ के गर्भ में
और एक दिन निकलती है, गर्भाशय की जमीन चीरती हुई
तब पृथ्वी की हर एक बेटी बन जाती है माँ,
तब खुल जाता है नया आसमां
उस जीव को मिल जाता है जीवन, और माँ के जीवन की शुरू होती नई भंगिमा।

तब से माँ स्वयं के लिए कुछ नहीं रहती,
वह बन जाती उस नन्हें का विश्व
तब से उसकी साँसों के स्पंदन में, केवल रहता है
वह नन्हा जीव सर्वस्व
अपनी नस-नस के लहू को दूध में, परिवर्तित कर वह पिलाती है अपना स्वत्व
उसकी साँस बनकर झोंक देती है, उसकी रगों में अपना खुद का निजत्व।

उसका सारा संसार होता है अपना बच्चा,
बच्चे के प्रति रहती है बनकर सच्चा
हर पल संवारती, उसके जीवन को निहारती,
उसको इन्सान बनाती अच्छा
जन्म से लेकर शादी तक माँ लुटा देती है सर्वस्व,
ताकि संपूर्ण हो अपना बच्चा
अर्पित कर देती है सारी समिधाएं जीवन की,
जीवन का तर्पण कर देती सच्चा।

मैं आज जो भी हूँ, जैसा भी हूँ, बस मेरी माँ की देन हूँ
मैं कल्पना नहीं कर सकता उसके अथक प्रयासों की, बस मौन हूँ
मैं परिभाषित नहीं कर सकता माँ के संस्कारों को,
बस नि:शब्द हो जाता हूँ सोंच कर माँ के उपकारों को
मेरे जीवन में भरने उजियारा,
मेरी माँ ने निपटा दिया है कई अंधियारों को।

दुनिया की तमाम माँओं को मैं, आज प्रणाम भेजता हूँ
स्वीकार करना मातृशक्तियों, एक अर्ज उनके नाम भेजता हूँ।
माँ बस माँ होती है, वह सारे अल्फाजों से परे होती है,
माँ धरती, माँ आकाश, जीवन के अवकाश को धरे होती है॥

परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।