राधा गोयल
नई दिल्ली
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स्वस्थ मन में ही स्वस्थ तन का विकास होता है। हमने अपने मन में न जाने नकारात्मकता का कितना कचरा भरा हुआ है। यदि स्वस्थ रहना चाहते हो तो इसे दूर करना बेहद जरूरी है और इसका उपाय है योग। योग हमारे देश की सबसे प्राचीन पद्धति है जिसमें कई बीमारियों का इलाज संभव है। अब तो सारी दुनिया इस बात को मानने लगी है। विश्व भर में लोगों ने योग करना शुरू कर दिया है।
समस्या यह है कि बच्चों को योग का महत्व कैसे समझाएँ ? यह बड़ी टेढ़ी खीर है। ३ साल की उम्र के बाद बच्चों को खेल खेल में योग करवाया जा सकता है। इससे उनमें अपने-आप ही धीरे- धीरे योग करने की प्रवृत्ति पैदा होगी। यदि हम केवल प्रवचन करेंगे कि बेटे आपको योग करना चाहिए तो वे कभी नहीं मानेंगे।
एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करना चाहूँगी-मेरे बेटे को बचपन से ही नाक से साँस लेने में तकलीफ होती थी, जिसकी वजह से नाक में ड्रॉप्स डालनी पड़ती थीं। एक बार ईएनटी के एक अच्छे चिकित्सक को दिखाया। जब मैंने यह बताया कि यह तभी सो पाता है जब इसकी नाक में ड्राप डाल दी जाती है, वरना तो नाक बंद हो जाती है। साँस नहीं ले पाता, तो चिकित्सक ने बहुत डाँटा और कहा-“क्या आपको मालूम है कि नेज़ल ड्रॉप से दिमाग में खुश्की हो जाती है ? इसका उपचार मैं बता रहा हूँ। होंठों में कागज दबाकर बच्चे से दौड़ लगवाओ। कागज होंठों से बाहर नहीं निकलना चाहिए। अपने-आप नाक से साँस आना शुरू हो जाएगा।”
मुझे मालूम था यह अकेला तो इस काम को कभी नहीं करेगा। उसी की उम्र के २-३ बच्चों को इकट्ठा किया। गत्ते के टुकड़े काटे और बच्चों को कहा कि चलो एक खेल खेलते हैं। इस गत्ते को होंठों में दबाओ। दाँतों में नहीं दबाना और दौड़ कर उस पेड़ को छूकर फिर इधर वापस आओ। इस तरह से १० चक्कर लगाओ। देखते हैं कौन बच्चा जीतता है। बच्चों को इस खेल में बड़ा मजा आया। १ महीने तक रोज शाम को यही खेल खेलते थे और बेटे को नाक से साँस आने लगा।
मुझे स्वयं भी जबर्दस्त सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस था। कितना इलाज कराया, लेकिन मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की। आखिरकार योग से ही बीमारी ठीक हुई।
मेरे पोते को खाँसी की बहुत शिकायत रहती थी। बेहद बलगम बनता था। पुत्रवधू को ऐलोपैथी में बहुत यकीन है। कितना इलाज कराया। हालत यह हो गई कि दवाओं से कफ छाती पर जम गया और उसके बाद तो वो खाँस-खाँस कर बेदम हो गया। मैं वैसे बहू की इच्छा पर अपनी इच्छा कभी नहीं थोपती, लेकिन तब थोपनी पड़ी। पार्क में जाकर योग शिक्षक से बात करके आई। अगले दिन उन्होंने पोते को ‘जलनेति’ करवाई। कम से कम सौ ग्राम बलगम निकला। तब से बहू को यकीन हुआ।
किसी की नाक की हड्डी बढ़ी हुई हो तो ‘सूत्रनेति’ करने से ठीक हो जाती है।
किसी की आँख की पेशी कमजोर होती हैं। वह किसी दवा से ठीक नहीं होती, बल्कि यौगिक क्रियाओं द्वारा ही ठीक होती है। योग और प्राणायाम द्वारा न जाने कितनी बीमारियों का इलाज हो जाता है। प्राणायाम से तो ७० प्रतिशत बीमारियों का इलाज हो जाता है।
यौगिक क्रिया हमेशा किसी योग्य गुरु की देखरेख में करनी चाहिए, वरना कई बार गलत प्रणाली अपनाने से फायदे की बजाए नुकसान ज्यादा होता है। जैसे आजकल कहा जाता है ‘कपालभाति’ करो। बच्चों के लिए तो बड़ा आसान है, लेकिन जिन महिलाओं को हर्निया की शिकायत हो, उन्हें कभी नहीं करनी चाहिए। ऐसा स्वामी रामदेव जी ने कहा था।जिनको सर्वाइकल स्पाॅण्डेलाईटिस की समस्या हो, उन्हें ‘भुजंगासन’ नहीं करना चाहिए। जहाँ तक रही बच्चों को योग करवाने की बात, आजकल तो ऐसी कार्टून फिल्में भी आ रही हैं। बच्चों को बचपन से ही वह फिल्में दिखाई जाएँ, तो देखा-देखी छोटे बच्चे अपने-आप ही योग करना शुरू कर देंगे और फिर वह उनकी आदत में शुमार हो जाएगा। बड़े होने पर कोई बच्चा नहीं सुनता। योग करना तो बहुत दूर, ताजी हवा खाने के लिए पार्क में घूमने की फुर्सत भी कहाँ। खेलना भी है तो ४ लोग इकट्ठे बैठकर मोबाइल में ही खेलते हैं। इसलिए बहुत बचपन से ही बच्चों को अच्छी कार्टून फिल्में दिखाई जाएँ, क्योंकि बच्चों को कार्टून फिल्में बहुत पसंद आती हैं।