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बबूल

मनोरमा जैन ‘पाखी’
भिंड(मध्यप्रदेश)
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मन के मरुथल में हैं बो दिये बबूल,
करते तन छलनी पर हैं मुझे कबूल।

सौगात मिली है जो मुझको कैसे करूँ इंकार,
सारे गम हैं करते हम पर अब अपना अधिकार।
चुभते हैं दिल में हरपल बनकर जैसे शूल,
करते तन छलनी पर हैं मुझे कबूल…॥

मैंने एक ख्वाब देखा था खिजां में बहारों का,
न गुलाबों का न जूही का,बस बबूलों की कतारों का।
बनें हैं हमसफर काँटे न है खिलते फूल,
करते तन छलनी पर हैं मुझे कबूल…॥

पड़े हैं पाँव में छाले छलकता दर्द आँखों से,
करूँ मैं शुक्रिया कैसे दिल के गुनहगारों से।
जीवनभर का दर्द बस मैंने लिया वसूल,
करते तन छलनी पर मुझे हैं कबूल ।

लगा कुछ रोग है ऐसा दवा न काम आती है।
लेकर एक गम कोरा यहाँ हर शाम आती है।
बस दर्द जीवन भर यही मैंने किया वसूल,
करते तन छलनी पर हैं मुझे कबूल…॥

परिचय-श्रीमती मनोरमा जैन साहित्यिक उपनाम ‘पाखी’ लिखती हैं। जन्म तारीख ५ दिसम्बर १९६७ एवं जन्म स्थान भिंड(मध्यप्रदेश)है। आपका स्थाई निवास मेहगाँव,जिला भिंड है। शिक्षा एम.ए.(हिंदी साहित्य)है। श्रीमती जैन कार्यक्षेत्र में गृहिणी हैं। लेखन विधा-स्वतंत्र लेखन और छंद मुक्त है,व कविता, ग़ज़ल,हाइकु,वर्ण पिरामिड,लघुकथा, आलेख रचती हैं। प्रकाशन के तहत ३ साँझा काव्य संग्रह,हाइकु संग्रह एवं लघुकथा संग्रह आ चुके हैं। पाखी की रचनाएं विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं झारखंड से इंदौर तक छपी हैं। आपको-शीर्षक सुमन,बाबू मुकुंदलाल गुप्त सम्मान,माओत्से की सुगंध आदि सम्मान मिले हैं। मनोरमा जैन की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के माध्यम से मन के भाव को शब्द देना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-हिंदी में पढ़े साहित्यकारों की लेखनी,हिंदी के प्राध्यापक डॉ. श्याम सनेही लाल शर्मा और उनकी रचनाएं हैं। मन के भाव को गद्य-पद्य में लिखना ही आपकी विशेषज्ञता है।

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