डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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गरिमामय महिमा कृपा, ज्ञान सिन्धु आचार्य।
मातु पिता भाई सखा, पूर्ण शिष्य सब कार्य॥
अखंड चरित गुरु आपका, रूप मण्डलाकार।
राह दिखाएँ ईश की, मुक्ति द्वार संसार॥
करूँ वन्दना गुरु चरण, बनूँ चरित इन्सान।
समरस सद्भावन हृदय, शिक्षक दे वरदान॥
भर उमंग गुरु ज्ञान मन, फैले जगत प्रकाश।
शिक्षा संजीवन मनुज, पूर्ण ज़िंदगी आश॥
कर्मवीर निज लक्ष्य पथ, चढ़ता सदा उतंग।
खिले कीर्ति सत्पथ सुयश, गुरुता थिरके अंग॥
गुरु प्रकाश हो चाँद सम, शीतल ज्ञानालोक।
मिटे गरल अज्ञानता, त्रिविध ताप जग शोक॥
शील त्याग गुण कर्म यश, गुरु
शिष्य नित मीत।
मति विवेक मूर्धन्य हो, शास्त्र ज्ञान सद्नीत॥
शिक्षक निर्माणक जगत, सप्तसिन्धु गुरु ज्ञान।
कोटि-कोटि गुरु वन्दना, परमब्रह्म भगवान॥
शिक्षक शिक्षालोक से, आलोकित संसार।
गुरु त्रिदेव से श्रेष्ठतम, सद्गुरु ज्ञान अपार॥
शिक्षक गुरु आचार्य से, नामित लोक महान।
कवि ‘निकुंज’ गुरु पद भजे, मिला सफल यश मान॥
सत्य रूप गुरु स्वयं हैं, शिक्षक शिष्य प्रकाश।
गुरु देवों से श्रेष्ठतर, संजीवन दे आश॥
मनामना सम गुरु कहाँ, कहाँ भाव कल्याण।
नमन कोटि है समादर, गुरुता स्वत: प्रमाण॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥