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त्योहार के बाद का खालीपन

बबिता कुमावत
सीकर (राजस्थान)
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दीपक बुझे,
धुआँ खोता खुशबू
रात रो पड़ी।

रंग उतरे,
आँगन सूना बोला
दम ठिठके।

छत अकेली,
एक दीया है बुझा
स्मृति चमकी।

सड़कें सूनी,
ढोलक गूँज गई
धूल ही नाची।

पेड़ों के नीचे,
गिरे कागज़ फूल
मौन बिछा है।

मीठी बातों का,
स्वाद है फीका पड़ा
चाय अकेली।

बदले बच्चे,
फुलझड़ियाँ सोईं
आँगन ठंडा।

शहर थका,
बिजली सुस्त हुई
नींद गहरी।

मन खाली है,
जैसे गीत अधूरा
सुर भटके।

देहरी पास,
एक दीया बुझा-सा
माँ की नज़र।

दीप हैं बुझे,
हँसी की गूँज थमी
मन है सूना।

यादें सुरीली,
रातें हैं शांत हुईं
सपने जागे।

रंग भी खोए,
सड़कें खाली पड़ी
मन उदास॥