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मातृभाषा के प्रयोग से ही सर्वांगीण विकास संभव-डॉ. गुप्ता

‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ समारोह…..

नारनौल(हरियाणा)।

मातृभाषा के माध्यम से ही व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव है। अतः हमें सर्वप्रथम मातृभाषा,फिर देश की भाषा और अंत में विश्वभाषा को अपनाना चाहिए।
यह बात अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ (मुंबई,महाराष्ट्र) के निदेशक डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’ ने कही। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा-दिवस समारोह’ में आपने स्पष्ट रुप से अन्य बिंदुओं पर भी बात की।
इस मौके पर वीबीएस पूर्वांचल विश्वविद्यालय (जौनपुर,उत्तर प्रदेश) की कुलपति डॉ. निर्मला एस. मौर्य ने बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए कहा कि मातृभाषा का स्थान माँ के समान होता है,जिसे कोई अन्य भाषा नहीं ले सकती। मातृभाषा बच्चे के लिए टॉनिक के समान होती है,जो उसमें आत्म-शक्ति के साथ आत्म-विश्वास और आत्म-गौरव का भाव भी पैदा करती है। विश्व-नागरिक के रूप में विख्यात पूर्व राजनयिक तथा हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन (एमस्टर्डम,नीदरलैंड) की निदेशक डॉ. पुष्पा अवस्थी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि भारतवंशी तथा प्रवासी भारतीयों ने अपनी संस्कृति और मातृभाषाओं को सहेजकर रखा है और इसीलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के विकास हेतु भारत सरकार को भी उनका सहयोग लेना पड़ता है। पूर्व राजनयिक तथा केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, (नई दिल्ली) के सहायक निदेशक डॉ. दीपक पांडेय ने मातृभाषा को अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम और संस्कृति का संवाहक बताते हुए कहा कि व्यक्ति चाहे जितनी भाषाएं सीख ले,लेकिन वह सोचता अपनी मातृभाषा में ही है। अत: प्रतिभा का विकास मातृभाषा द्वारा ही संभव है।
सिंघानिया विश्वविद्यालय (राजस्थान) के कुलपति डॉ. उमाशंकर यादव ने मातृभाषा की अपेक्षा राजभाषा को अपनाने पर अधिक बल दिया,ताकि राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोया जा सके।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद्(नारनौल) के जिला अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना गीत के उपरांत मुख्य न्यासी डॉ. रामनिवास ‘मानव’ के सान्निध्य तथा डॉ. पंकज गौड़-उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ के कुशल संचालन में इस समारोह में महात्मा गांधी संस्थान(मौका,मॉरीशस) के प्रो. डॉ. कृष्णकुमार झा,पूर्व राजनयिक डॉ. नूतन पांडेय और राजभाषा विभाग(हिंदी शिक्षण योजना) के प्राध्यापक डॉ. वीरेंद्र परमार ने भी मातृभाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उसे अपनाने और शिक्षा का माध्यम बनाने की वकालत की।
१२ देशों के कवियों ने किया काव्य पाठ-
काव्य-कुंभ के रूप में द्वितीय सत्र में ६ महाद्वीपों और १२ देशों के कवियों-कवियित्रियों ने सहभागिता की। इनमें महेंद्र नगर (नेपाल) के हरीशप्रसाद जोशी और प्रो. खगेंद्रनाथ बियोगी,पर्थ (ऑस्ट्रेलिया) की रीता कौशल,दार-एस-सलाम (तंजानिया) के अजय गोयल,नैरोबी (केन्या) की मनीषा कंठालिया,मौका के डॉ. कृष्णकुमार झा, आबूधाबी (यूएई) की ललिता मिश्रा,लैडिंग (सूरीनाम) की सुषमा खेदू एवं पोर्ट ऑफ स्पेन (त्रिनिडाड) की आशा मोर तथा डॉ. रामनिवास ‘मानव’ शामिल रहे। इस अवसर पर हिंदी सहित प्रमुख भाषाओं और बोलियों में कविताएं पढ़ी गईं।
लगभग ४ घंटे तक चले इस समारोह में विश्व बैंक (वाशिंगटन डीसी,अमेरिका) की अर्थशास्त्री डॉ. एस अनुकृति और सलाहकार प्रो. सिद्धार्थ रामलिंगम सहित डॉ. पूर्णमल गौड़,डॉ. पीए रघुराम,प्राचार्या डॉ. संध्या तिवारी,प्रो.डॉ सुशीला आर्य,महेंद्रसिंह गौड़,डॉ. जनार्दन यादव,संजय पाठक,विश्वजीत मजूमदार,शुभा राजपूत,वेंकटेश राव और उषाकिरण शास्त्री,डॉ. राजेश शर्मा आदि की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

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