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एक न‌ई आशा

अनूप कुमार श्रीवास्तव
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……

फेसबुक,वाट्सअप,
ट्विटर,इंस्टाग्राम
सभी तो आए हैं,
पुस्तकों के मंचों पर
अपना-अपना समय,
और व्यस्तता काट कर।

पुस्तकें,पुस्तकों से,
भाषाएं भाषाओं से
विमर्श कर रहीं हैं,
पुस्तकों की स्टॉलों पर।

जले-बुझे,टिमटिमाते,
बहुत से प्रकाशकों में
कुछ के खिलखिलाते,
चेहरे हैं।

गीत हैं ग़ज़ल हैं,
कविताएं हैं छंद हैं
कहानियां हैं,
जीवन की निशानियां हैं
दूसरी तरफ क्रान्ति बनीं,
सच्चाईयां हैं।

अभी-अभी,
सज-धज के
पुस्तकें यहां आई हैं,
पढ़ना एक नशा है
लिखने की प्रेरणा,
एक न‌ई आशा है।

गुरुओं की आभा से,
लेना और बांटना है
कुछ-कुछ सीखना है,
कुछ बोना,कुछ सींचना है।

देखा है उसको,
ऐसी भरी दुपहरी में
पीठ पर,
धूप का गोला रख
लाईब्रेरी की ओर,
पढ़ने को जाते हुए।

खूबसूरत,
जिल्दों से मिलने के
लिए
अक्षरों से अपना,
अंतर्मन फुसलाने
के लिए।

पुस्तकों में रम गया
मन,
पुस्तक मेलों से
लौटकर,
जाने किसने हाथ फेरा
संभावनाओं पर,
अक्सर।

‘विश्व पुस्तक दिवस’,
पुस्तकों के मंच पर
लेखक की लेखनी का,
भावों का मकड़जाल
भेदना है,
शब्दों से खेलना
शब्दों में डूबना,
शब्दों से कई बार
जीवन को,
जीवनदान
देना है।

परकाया तन से बार-बार,
लौटना
स्वंय को सजाना है।
पुस्तक दिवस प्रति वर्ष
मनाना है।
सार्थक और सबल,
बनाना है॥

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