मदन गोपाल शाक्य ‘प्रकाश’
फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)
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जीवन एक पतंग समान,
डोरी टूटी,गया आसमान।
चलते जीवन की मर्यादा,
मन में बसता लाख इरादा।
कितने जीते अरमानों में,
लुटते कितने अनजाने में।
मौसम भी है जो बेईमान,
जीवन एक पतंग समान।
स्वर्ण वर्ण है कंचन काया,
अद्भुत रूप जगत में पाया।
टूटी डोर समझ नहीं पाया,
जीवन में क्या मोड़ दिखाया।
देह रह गई उड़ गए प्रान,
जीवन एक पतंग समान।
पता नहीं यह कैसी माया,
छण भंगुर है जीवन छाया।
प्यार भी है परिवार बसाया,
प्राणी मात्र कर्म कर पाया।
आना-जाना जीवन तान,
जीवन एक पतंग समान॥